शंकर मिश्र
"बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥" क वक्ता। पन्द्रहम शताब्दीमे भवनाथ मिश्रक घरमे मधुबनी जिलाक सरिसव ग्राममे शंकर मिश्रक जन्म भेल।महाराज भैरव सिंहक कनिष्ठ पुत्र राजा पुरुषोत्तमदेवक आश्रित छलाह। एकर वर्णन रसार्णव ग्रंथमे भेटैत अछि। कवि, नाटककार, धर्मशास्त्री आ न्याय-वैशेषिकक व्याख्याकार रहथि।ग्रंथावली- १.गौरी दिगम्बर प्रहसन २.कृष्ण विनोद नाटक ३.मनोभवपराभव नाटक४.रसार्णव५.दुर्गा-टीका६.वादिविनोद७.वैशेषिक सूत्र पर उपस्कार८.कुसुमांजलि पर आमोद९.खण्डनखण्ड-खाद्य टीका १०.छन्दोगाह्निकोद्धार ११.श्राद्ध प्रदीप १२.प्रायश्चित प्रदीप। म.म.
पन्द्रहम शताब्दीमे भवनाथ मिश्रक घरमे मधुबनी जिलाक सरिसव ग्राममे शंकर मिश्रक जन्म भेल। भवनाथ मिश्र बहुत पैघ नैय्यायिक छलाह आऽ कहियो ककरोसँ कोनो वस्तुक याचना नहि कएलन्हि, ताहि लेल सभ हुनका अयाची मिश्र कहए लगलन्हि। शँकर मिश्र पितासँ अध्ययन प्राप्त कएलन्हि आऽ पैघ भाए जीवनाथ मिश्रससँ विद्याक अधिग्रहण कएलन्हि।
जखन पाँच वर्षक छलाह तँ महाराज शिव सिंहक सबारी जाऽ रहल छल। राजा ओहि प्रतिभाशाली बालककेँ देखलन्हि आऽ हुनकासँ परिचय पुछलन्हि। तखन उत्तर भेटलन्हि-
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
फेर राजाक आग्रह पर ओऽ दोसर श्लोक पढ़लन्हि-
चलितश्चकितच्च्हन्नः प्रयाणे तव भूपते।
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्रपात् ॥
राजा प्रसन्न भए द्रव्य देलखिन्ह जाहिसँ, शंकरक माए पोखरि खुनबेलन्हि, ओऽ पोखरि एखनो सरिसबमे अछि।
महाराज भैरव सिंहक कनिष्ठ पुत्र राजा पुरुषोत्तमदेवक आश्रित छलाह। एकर वर्णन रसार्णव ग्रंथमे भेटैत अछि।
कवि, नाटककार, धर्मशास्त्री आऽ न्याय-वैशेषिक केर व्याक्याकार रहथि।
ग्रंथावली-
१. १.गौरी दिगम्बर प्रहसन
२. २.कृष्ण विनोद नाटक
३. ३.मनोभवपराभव नाटक
४. ४.रसार्णव
५. ५.दुर्गा-टीका
६. ६.वादिविनोद
७. ७.वैशेषिक सूत्र पर उपस्कार
८. ८.कुसुमांजलि पर आमोद
९. ९.खण्डनखण्ड-खाद्य टीका
१०.१०.छन्दोगाह्निकोद्धार
११.श्राद्ध प्रदीप
१२.प्रायश्चित प्रदीप।
अंतिम तीनू टा ग्रन्थ धर्मशास्त्र पर लिखल गेल आऽ क्रमसँ सामवेदक अनुसारे दैनिक धार्मिक कृत्यक नियमावली, श्राद्ध कर्म आऽ प्रायश्चितिक अनुष्ठानसँ संबंधित अछि।शंकर मिश्रसँ संबंधित बहुत रास जनश्रुति प्रसिद्ध अछि। अयाची वृद्ध भए गेल छलाह, परन्तु पुत्रविहीन रहथि। पत्नी भवानी दुःखसँ काँट भए गेल छलीह। तखन अयाची मिश्र बाबा वैद्यनाथसँ पुत्रक याचना कएलन्हि आऽ हुनकर मनोकामना पूर्ण भेलन्हि-स्वयं शंकर भगवान अवतरित भेलाह आऽ ताहि द्वारे बालकक नाम शंकर पड़ल। जन्म पर गामक आया किंवा चमैन इनाम मँगलखिन्ह, मुदा परिवारक लगमे किछु नहि छल आऽ ताहि हेतु भवानी वचन देलखिन्ह जे बालकक प्रथम कमाइ अहाँकेँ दए देब। से जखन एक बेर राजा शिव सिंह खुशी भए बालककें कहलखिन्ह जे अहाँ जतेक सोना-चाँदी लए जा सकी लए जाऊ। बालक मात्र धरिया पहिरने छलाह तेँ मात्र किछु सोनाक छड़ लए जाऽ सकलाह, आऽ सेहो भवानी अपन वचनक अनुरूपें आया-चमैनकेँ दए देलखिन्ह। चमैन ओहि पाइसँ एकटा पोखरि सरिसवमे खुनबएलन्हि, जे चमनियाँ पोख्रिक नामसँ एखनो विद्यमान अछि।
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