हरिमोहन झा

हरिमोहन झा (1908-1984) हिनकर मैथिली कृति १९३३ मे “कन्यादान” (उपन्यास), १९४३ मे द्विरागमन”(उपन्यास), १९४५ मे “प्रणम्य देवता” (कथा-संग्रह), १९४९ मे “रंगशाला”(कथा-संग्रह), १९६० मे “चर्चरी”(कथा-संग्रह) आऽ १९४८ ई.

मे “खट्टर ककाक तरंग” (व्यंग्य) अछि। मृत्योपरांत १९८५मे (जीवन यात्रा, आत्मकथा)पर मैथिलीक साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित।

हरि मोहन झा
जन्म(१९०८-०९-१८)सितम्बर १८, १९०८
मृत्युफरबरी २३, १९८४(१९८४-०२-२३) (७५ वर्ष)
पेशाप्रोफेसर, लेखक
भाषामैथिली, अंगरेजी आ हिंदी
राष्ट्रियताभारतीय
नागरिकताभारत
मातृसंस्थापटना विश्वविद्यालय
उल्लेखनीय पुरस्कारसाहित्य अकादमी

जन्म १८ सितम्बर १९०८ ई. ग्राम+पो.- कुमर बाजितपुर , जिला- वैशाली, बिहार, भारत। पिता- स्वर्गीय पं. जनार्दन झा “जनसीदन” मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दीक लब्धप्रतिष्ठ द्विवेदीयुगीन कवि-साहित्यकार। शिक्षा- दर्शनशास्त्रमे एम.ए.- १९३२, बिहार-उड़ीसामे सर्वोच्च स्थान लेल स्वर्णपदक प्राप्त। सन् १९३३ सँ बी.एन.कॉलेज पटनामे व्याख्याता, पटना कॉलेजमे १९४८ ई.सँ प्राध्यापक, सन् १९५३ सँ पटना विश्वविद्यालयमे प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष आऽ सन् १९७० सँ १९७५ धरि यू.जी.सी. रिसर्च प्रोफेसर रहलाह। हिनकर मैथिली कृति १९३३ मे “कन्यादान” (उपन्यास), १९४३ मे “द्विरागमन”(उपन्यास), १९४५ मे “प्रणम्य देवता” (कथा-संग्रह), १९४९ मे “रंगशाला”(कथा-संग्रह), १९६० मे “चर्चरी”(कथा-संग्रह) आऽ १९४८ ई. मे “खट्टर ककाक तरंग” (व्यंग्य) अछि। “एकादशी” (कथा-संग्रह)क दोसर संस्करण १९८७ ए. मे आयल जाहिमे ग्रेजुअट पुतोहुक बदलाने “द्वादश निदान” सम्मिलित कएल गेल जे पहिने “मिथिला मिहिर”मे छपल छल मुदा पहिलुका कोनो संग्रहमे नहि आएल छल।श्री रमानथ झाक अनुरोधपर लिखल गेल “बाबाक संस्कार” सेहो एहि संग्रहमे अछि। आऽ हुनकर “खट्टर काका” हिन्दीमे सेहो १९७१ ई. मे पुस्तकाकार आएल। एकर अतिरिक्त हिनकक स्फुट प्रकाशित-लिखित पद्यक संग्रक “हरिमोहन झा रचनावली खण्ड ४ (कविता)” एहि नामसँ १९९९ ई.मे छपल आऽ हिनकर आत्मचरित “जीवन-यात्रा” १९८४ ई.मे छपल। हरिमोहन बाबूक “जीवन यात्रा” एकमात्र पोथी छल जे मैथिली अकादमी द्वारा प्रकाशित भेल छल आऽ एहि ग्रंथपर हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कार १९८५ ई. मे मृत्योपरान्त देल गेलन्हि। साहित्य अकादमीसँ १९९९ ई. मे “बीछल कथा” नामसँ श्री राजमोहन झा आऽ श्री सुभाष चन्द्र यादव द्वारा चयनित हिनकर कथा सभक संग्रह प्रकाशित कएल गेल, एहि संग्रहमे किछु कथा एहनो अछि जे हिनकर एखन धरिक कोनो पुरान संग्रहमे सम्मिलित नहि छल। हिनकर अनेक रचना हिन्दी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तेलुगु आदि भाषामे अनुवादित भेल। हिन्दीमे “न्याय दर्शन”, “वैशेषिक दर्शन”, “तर्कशास्त्र”(निगमन), दत्त-चटर्जीक “भारतीय दर्शनक” अंग्रेजीसँ हिन्दी अनुवादक संग हिनकर सम्पादित “दार्शनिक विवेचनाएँ” आदि ग्रन्थ प्रकाशित अछि। अंग्रेजीमे हिनकर शोध ग्रंथ अछि- “ट्रेन्ड्स ऑफ लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी”।

प्राचीन युगमे विद्यापति मैथिली काव्यकेँ उत्कर्षक जाहि उच्च शिखरपर आसीन कएलनि, हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली गद्यकेँ ताहि स्थानपर पहुँचा देलनि। हास्य व्यंग्यपूर्णशैलीमे सामाजिक-धार्मिक रूढ़ि, अंधविश्वास आऽ पाखण्डपर चोट हिनकर लेखनक अन्यतम वैशिष्ट्य रहलनि। मैथिलीमे आइयो सर्वाधिक कीनल आऽ पढ़ल जाय बला पोथी सभ हिनकरहि छनि।

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