विद्यापति: नेपाल आ भारतीय संघक मैथिली कवि

विद्यापति (१३५२-१४४८) मैथिल कवि कोकिल कऽ नाम सँ सेहो जानल जाएवला मैथिली साहित्यक आदि कवि आ संस्कृतक लेखक छलाह । हुनका भारतीय साहित्यक 'श्रृङ्गार-रस'क सङ्ग-सङ्गे 'भक्ति-परम्परा'क सेहो प्रमुख स्तम्भसभ मे सँ एक आ' मैथिली भाषाक सर्वोपरि कविक रूप मे जानल जाइत अछि। हिनकर काव्य सभ मे मध्यकालीन मैथिली भाषाक स्वरूपक दर्शन कएल जा' सकैत अछि । हिनका वैष्णव, शैव आ शाक्त तीनहु भक्तिक सेतुक रूप मे सेहो स्वीकार कएल गेल अछि । मिथिलाक लोकसभकेँ 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' कऽ सुत्र द' ओ उत्तरी-बिहारमे लोकभाषाक जनचेतना केँ जीवित करबाक महान प्रयास केने छलाह । विद्यापति द्वारा रचित पद्य सभ मात्र मैथिली भाषा के साहित्यिक प्रेरणा नहि देलक अपितु हिन्दुस्तानी भाषा, बङ्गाली, नेवारी आ अंशत:नेपाली भाषा के सेहो साहित्यिक प्रेरणा देने छल ।

विद्यापति
Vidyapati
विद्यापति: जीवनी, कविता, लेखन
जन्म१३५२
मधुबनी, वर्तमान-भारत
मृत्यु१४४८
मउ बाजिदपुर, वर्तमान-विद्यापतिनगर, समस्तीपुर, बिहार, भारत
निवासपूरान नेपाल
पेशालेखक , कवी
भाषामैथिली, नेपाली, बङ्गाली, उडिया
राष्ट्रियताभारतीय आ नेपाली
नस्लमैथिल
फाइल:Bidhya pati.jpg
नेपालक हुलाक टिकटम विद्यापति

मिथिला क्षेत्रमे एखनो लोकव्यवहार मे प्रयोग कएल जाएवला गीतसभ मे सेहो विद्यापतिक श्रृंङ्गार आ भक्ति-रसमे रचल रचनासभ जीवित अछि। पदावली आ कीर्तिलता हिनकर अमर रचनासभ मे सँ मुख्य थीक ।

जीवनी

विद्यापतिक जन्म सन् १३५२ मे मिथिला क्षेत्रमे (वर्तमान भारतक बिहार राज्यक मधुबनी जिलाक बिस्फी गाम) भेल छल । हिनक पिताक नाम गणपति ठाकुर छल। विद्यापति नाम संस्कृत भाषा सँ व्युत्पन्न भेल अछि। 'विद्या' कऽ अर्थ ज्ञान आ 'पति' कऽ अर्थ 'स्वामी' होएत अछि जकर सम्मिलित स्वरुप 'ज्ञान सँ सुसज्जित पुरुष' होएत अछि।

कविता

विद्यापति संस्कृत, अवहट्ठ, आ मैथिली भाषामे पद्य-रचना केने छलाह । ओ 'भूपरिक्रमा', 'पुरुषपरीक्षा', 'पदावली' आदि अनेक रचना क' साहित्य जगत केँ श्रेष्ठता प्रदान केने छल। 'कीर्तिलता' आ 'कीर्तिपताका' नामक रचना ओ अवहट्ठ मे केने छलाह । पदावली हिनकर हिन्दी-रचना थीक आ' यैह हुनकर हिन्दी-साहित्य मे प्रसिद्धि केरि कारण थीक । पदावली मे राधा ओ कृष्णक भक्ति-विषयक श्रृङ्गारक पद अछि । एहि आधार पर हिनका हिन्दी मे राधा-कृष्ण-विषयक श्रृङ्गारी काव्यक जन्मदाताक रूप मे जानल जाइत अछि ।

प्रेम गीत

अन्य प्रमुख काजसभ

लेखन

हिनक परवर्ती वंशज आइ-काल्हि सौराठ गाम मे रहैत छथि । एकर प्रमाण निम्न दृष्टान्त सभ सँ लगैत अछि । सन् १३९४-९६क मध्य रचित पदक समर्पण गियासुद्दीन आजमशाह आ नसरत शाह केँ कएल गेल अछि । देवसिंहक आदेश सँ सन् १४००क करीब ई 'भू-परिक्रमा' लिखलन्हि । सन् १४०२-०४क मध्य 'कीर्तिलता'क रचना कीर्ति सिंहक राज्यकाल मे केलन्हि । सन् १४०९-१४१५क मध्य कीर्तिपताकाक रचना - पूर्वार्ध सन् १४०९क लगाति मे - हरि केलि अर्जुन सिंहक कीर्तिगाथासँ सम्बन्धित अछि आ' उत्तरार्ध सन् १४१५क लगाति मे शिवसिंहक युद्ध आ' देहावसान सँ सम्बद्ध अछि । विद्यापतिक सहमति सँ सन् १४१० मे 'काव्य-प्रकाश-विवेक'क प्रतिलिपि बनाओल गेल । सन् १४१० मे शिवसिंहक राज्यारोहण भेल आ' एहि उपलक्ष मे विद्यापति के बिसफीक दान-पत्र प्रदान कएल गेल । शिवसिंहक राज्यकाल सन् १४१०-१४ धरि रहल आ' एहि अवधि मे 'गोरक्ष-विजय' नाटक, 'पुरुष-परीक्षा' आ' मैथिली-पदावलीक अधिकांश भागक रचना भेल छल । सन् १४१६क लगाति पुरादित्यक आदेशसँ 'लिखनावली'क निर्माण भेल । सन् १४२८ मे भागवत-पुराणक विद्यापति लिखित प्रतिलिपि पूर्ण भेल। सन् १४२७-१४३९ मे पद्म सिंहक महारानी विश्वास देवीक आदेश सँ 'शैव सर्वस्वसार', 'शैव सर्वस्वसार प्रमाण भूत सङ्ग्रह' आ 'गङ्गा वाक्यावली'क रचना, सन् १४५३-६०क लगाति राजा नरसिंह दर्पनारायण आ' रानी धीरिमतिक समय मे 'विभागसार', 'व्याडिभक्ति- तरङ्गिणी' आ' 'दानवाक्यावली'क रचना भेल । सन् १४५५ कऽ लगाति भैरव सिंहक आज्ञा सँ 'दुर्गाभक्ति तरङ्गिणी'क रचना भेल आ' सन् १४६१ मे श्री रूपधर हिनका सँ छात्र-रूप मे अध्ययन केलन्हि । सन् १४६५ मे हिनक महाप्रयाण भेल होयतन्हि, जनश्रुति अछि जे ई दीर्घायु भेल छलाह आ सए बरखक आयु प्राप्त केने छलाह । आधुनिक मैथिली साहित्य-लेखन आ' विस्तार मे हुनक बड़ पैघ योगदान रहल अछि। मैथिली भाषा आओर साहित्य मे हिनक योगदान केँ नेपाल आओर भारत दुनू देश मे उच्च सम्मान प्रदान करैत अपन-अपन देशक डाकटिकट मे हुनक चित्र अङ्कित कयल गेल अछि।

हिनक रचना मे एक बेर जगज्जननी सीताक चर्चा एहि रूपमे आएल अछि—

उपर्युक्त पद्य विद्यापतिकृत शैवसर्वस्वसारक प्रारम्भक नवम श्लोक थीक । एकर अर्थ अछि- उत्कृष्ट गुणवती, मधुर स्वभाववाली, ब्राह्मण-वंशजा, नीति-कौशल मे विश्वविख्यात ओ महारानी विश्वासदेवी सम्प्रति संसारमे सुशोभित छथि, जे पृथ्वी-पति पद्मसिंह केँ तहिना प्रिय छलीह जहिना इन्द्रकेँ शची, शिवकेँ गौरी, कामकेँ रति, रामकेँ सीता ओ’ विष्णुकेँ लक्ष्मी॥9॥

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