काव्य, कविता या पद्य (अङ्ग्रेजी: Poetrycode: en is deprecated ) साहित्यक ओ विधा छी जाहिमे कोनो कथा या मनोभावक कलात्मक रूपसँ कोनो भाषाद्वारा अभिव्यक्त कएल जाइत अछि । भारतमे कविताक इतिहास आ कविताक दर्शन बहुत पुरान अछि । कविताक शाब्दिक अर्थ अछि काव्यात्मक रचना या कविद्वारा कएल गेल कृति, जे छन्दसभक शृङ्खलासभमे विधिवत बानहल जाइत अछि ।
काव्य ओ वाक्य रचना छी जकर चित्त कोनो रस या मनोवेगसँ पूर्ण होए । अर्थात ओ कला जाहिमे चुनल गेल शब्दसभद्वारा कल्पना आ मनोवेगसभक प्रभाव राखल जाइत अछि । रसगङ्गाधरमे 'रमणीय' अर्थक प्रतिपादक शब्दकें 'काव्य' कहल गेल अछि ।
काव्यप्रकाशमे काव्य तीन प्रकारक कहल गेल अछि, ध्वनि, गुणीभूत व्यङ्ग्य आ चित्र । ध्वनि ओ छी जहिमे शब्दसभसँ निकलल अर्थ (वाच्य) क अपेक्षा नुकाएल होए आ अभिप्राय (व्यङ्ग्य) प्रधान होए । गुणीभूत व्यङ्ग्य ओ छी जहिमे गौण होए । चित्र या अलङ्कार ओ छी जाहिमे बिना व्यङ्ग्यकें चमत्कार होए । ई तीनू प्रकार क्रमशः उत्तम, मध्यम आ अधम सेहो कहलावैत अछि । काव्यप्रकाशकार क जोर नुकाएल भाव पर अधिक जानि पड़ैत अछि, रसक उद्रेक पर नै । काव्यकें दुई आओरो भेद कएल गेल अछि, महाकाव्य आ खण्ड काव्य । महाकाव्य सर्गबद्ध आ ओकर नायक कियो देवता, राजा या धीरोदात्त गुण सम्पन्न क्षत्रिय होवाक चाही । ओहिमे शृङ्गार, वीर या शान्त रससभमे सँ कोनो रस प्रधान होनाए चाही । बीच बीचमे करुणा, हास्य इत्यादि आ रस तथा अन्य लोकसभक प्रसङ्ग सेहो आना चाही । कम सँ कम आठ सर्ग होवाक चाही । महाकाव्यमे सन्ध्या, सूर्य, चन्द्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदिक यथास्थान सन्निवेश होनए चाही ।
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