विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को संशोधन (amendment) कहते हैं। सभा या समिति के प्रस्ताव के शोधन की क्रिया के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है। किसी भी देश का संविधान कितनी ही सावधानी से बना हुआ हो किंतु मनुष्य की कल्पना शक्ति की सीमा बँधी हुई है। भविष्य में आनेवाली और बदलनेवाली सभी परिस्थितियों की कल्पना वह संविधान के निर्माणकाल में नहीं कर सकता; अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों की गुत्थियों के कारण भी संविधान में संशोधन, परिवर्तन करना वांछनीय एवं आवश्यक हो जाता है।
संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख लिखित संविधान का आवश्यक अंग माना गया है। गार्नर के शब्दों में 'कोई भी लिखित संविधान इस प्रकार के उपबंधों के बिना अपूर्ण है'। संविधान के गुणावगुण परखने की कसौटी भी संशोधन की प्रक्रिया है - प्रक्रिया सरल है अथवा कठोर है। कुछ देशों के संविधान का संशोधन विधिनिर्माण की साधारण प्रक्रिया के अनुसार ही होता है। ऐसे संविधानों को नमनीय या सरल संविधान कहते हैं। इस प्रकार के संविधान का सर्वोत्तम उदाहरण इंग्लैंड का संविधान है। कुछ संविधानों के संशोधन की प्रक्रिया के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया का आलंबन किया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल एवं दुरूह होती है। ऐसे संविधान जटिल या अनममीय संविधान कहलाते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका का संविधान ऐसे संविधानों का सर्वोत्तम उदाहरण है। भारतीय गणतंत्र संविधान के संशोधन का कुछ अंश नमनीय है और कुछ अंश की अनमनीय प्रक्रिया है। इन दोनों विधियों को ग्रहण करने से देश के मौलिक सिद्धांतों का पोषण होगा और संविधान में परिस्थितियों के अनुकूल विकसित होने की प्रेरणाशक्ति भी होगी।
उद्देशिका बी एन राव ने बनाया है जिसे प.जवाहरलाल नेहरू ने पेश किया जिसे स्वीकार किया गया है।
साधारणतया किसी सभा या समिति में किसी भी सदस्य को अपना मत प्रकट करने या कोई प्रस्ताव प्रेषित करने का अधिकार होता है। या जब किसी सभा के सदस्यों को सभा के विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग व्यक्तियों को मनोनीत करने का अधिकार होता है, तब मनोनीत करनेवाले सदस्य के कार्य की पुष्टि दूसरे सदस्य के द्वारा होना अनिवार्य होता है। अत: एक सदस्य जब किसी प्रस्ताव को प्रेषित करता है या किसी सदस्य को किसी कार्य के लिए मनोनीत करता है, तब इस कार्य को संवैधानिक बनाने के लिए दूसरे सदस्य को इस कार्य का समर्थन या अनुमोदन करना पड़ता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो उपयुक्त कार्य वैधानिक नहीं माने जाएँगे और वे कार्य शून्य घोषित किए जाएँगे।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन की दो प्रक्रियाओं का उल्लेख मिलता है। जो निम्न है -
1 - संसद के विशिष्ट बहुमत द्वारा संशोधन की प्रक्रिया
2 - संसद के विशिष्ट बहुमत और राज्य विधानमंडलों के अनुमोदन से संशोधन की प्रक्रिया
लेकिन संविधान संशोधन का एक तरीका और है जो निम्न है -
यदि संविधान में दर्ज इन उपबन्धों से संबन्धित नियमों,क़ानूनों और व्यवस्थाओं में संशोधन करना है तो इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। यह उपबन्ध निम्न है -
1 - राष्ट्रपति का निर्वाचन
2 - राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति
3 - संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
4 - संघीय क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
5 - राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
6 - संघीय नयायपालिका
7 - राज्यों में उच्च न्यायालय
8 - सातवीं अनुसूची में से कोई भी सूची
9 - संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व
10 - संघ तथा राज्यों में विधायी संबंध
संविधान के संशोधन के विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पृथक-पृथक अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होने के बाद उस विधेयक का राज्यों के कुल विधानमंडलों में से कम से कम आधे बहुमत द्वारा स्वीकृत होना चाहिए। फिर उस विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति मिलने पर उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने पर वह विधेयक भी संविधान का अंग बन जाता है।
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