वासुदेव शरण अग्रवाल (1904 - 1967) भारत के इतिहास, संस्कृति, कला एवं साहित्य के विद्वान थे। वे साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी गद्यकार हैं।
वासुदेव शरण अग्रवाल | |
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जन्म | 7 अगस्त, 1904 ई• मेरठ जिले का खेड़ा नामक ग्राम उत्तर प्रदेश,भारत |
मौत | 27 जुलाई, 1967 |
पेशा | विद्वान तथा लेखक |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल स्थान = मेरठ (खेडा) |
आंदोलन | स्वतंत्रता के बाद दिल्ली में स्थापित राष्ट्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय की स्थापना में इनका प्रमुख योगदान था। |
उल्लेखनीय काम | इन्होने मथुरा संग्रहालय (उत्तर प्रदेश) के संग्रहाध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। |
हिंदी गद्य के लोकविश्रुत रचनाकार वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद में स्थित खेड़ा नामक ग्राम में 7 अगस्त, सन् 1904 ई. को हुआ थ की काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1929 में एम•ए• करने के पश्चात् 1940 तक मथुरा पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष रहे। 1941 में पी-एच•डी• तथा 1946 में डी•एल.इ. डी.(D.l.e.d.{Diploma in Elementary Education} ) की उपाधि प्राप्त की। 1946 से 1951 तक सेंट्रल एशियन एंटिक्विटीज म्यूजियम के सुपरिंटेंडेंट और भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष रहे। सन् 1951 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के काॅलेज ऑफ इंडोलाॅजी (भारती महाविद्यालय) में प्रोफेसर का पद सुशोभित किया। सन् 1952 में लखनऊ विश्वविद्यालय में राधाकुमुद मुखर्जी व्याख्याननिधि की ओर से व्याख्याता नियुक्त हुए। व्याख्यानमाला 'पाणिनि' पर आयोजित की गयी थी। इसके अतिरिक्त भारतीय मुद्रापरिषद् (नागपुर), भारतीय संग्रहालय परिषद् (पटना), ऑल इंडिया ओरिएंटल काँग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन (बंबई) आदि संस्थाओं के सभापति भी रहे।
इनका निधन 27 जुलाई सन 1967 ई० में हुआ। Hahahqhuahauqhhq
वासुदेवशरण अग्रवाल के कृतित्व एवं तज्जनित यश का अमर आधार उनके द्वारा संस्कृत एवं हिन्दी के अनेक ग्रन्थों का किया हुआ सांस्कृतिक अध्ययन एवं व्याख्या है। संस्कृत में कालिदास एवं बाणभट्ट के ग्रन्थों से लेकर पुराण एवं महाभारत तक तथा हिन्दी में विद्यापति के अवहट्ठ काव्य से लेकर जायसी के अवधी भाषा के अमर महाकाव्य 'पद्मावत' तक विशाल एवं बहुआयामी ग्रन्थरत्न उनके अवगाहन के विषय रहे हैं। "पाणिनिकालीन भारतवर्ष" नामक उनकी कृति भारतविद्या का अनुपम ग्रन्थ है। इसमें उन्होने पाणिनि के अष्टाध्यायी के माध्यम से भारत की संस्कृति एवं जीवनदर्शन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने भाषा एवं साहित्य के सहारे भारत का पुन: अनुसंधान किया है और उसमें वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण विधि का प्रयोग किया है। यह ग्रन्थ विश्वकोशीय स्वरूप का हो गया है और अनुक्रमणिका के सहारे कोशीय रूप में उसका अध्ययन सुलभ भी है और उत्तम भी।
उनकी चयनित प्रतिनिधि रचनाओं (हिन्दी) को पढ़ने के लिए साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित उत्तम बृहत् संचयन है वासुदेवशरण अग्रवाल रचना संचयन। ~
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