मोटूरि सत्यनारायण (२ फरवरी १९०२ - ६ मार्च १९९५) दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार आन्दोलन के संगठक, हिन्दी के प्रचार-प्रसार-विकास के युग-पुरुष, महात्मा गांधी से प्रभावित एवं गाँधी-दर्शन एवं जीवन मूल्यों के प्रतीक, हिन्दी को राजभाषा घोषित कराने तथा हिन्दी के राजभाषा के स्वरूप का निर्धारण कराने वाले सदस्यों में दक्षिण भारत के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थे। वे दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा तथा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निर्माता भी हैं। सन १९४७ तक आप भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे।
मोटुरि सत्यनारायण | |
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पद बहाल 3 अप्रैल 1952 – 2 अप्रैल 1966 | |
जन्म | 2 फरवरी 1902 दोण्डापादु, कृष्णा जिला, आंध्र प्रदेश |
मृत्यु | मार्च 6, 1995 | (उम्र 93)
जीवन संगी | श्रीमती सूर्यकान्ता देवी |
व्यवसाय | कार्यकर्ता (ऐक्टिविस्ट), राजनेता |
श्री मोटूरि सत्यनारायण का जन्म आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के दोण्डपाडु ग्राम में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होने मछलीपत्तनम के नेशनल कॉलेज से अंग्रेजी, तेलुगु और हिन्दी की शिक्षा ली। उन्होने इन तीनों भाषाओं में में धाराप्रवाह बोलने की क्षमता अर्जित कर ली। इसके बाद उन्होने एक स्वयंसेवक के रूप में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा को अपनी सेवाएँ देना शुरू की और धीरे-धीरे इसके सचिव एवं मुख्य-सचिव भी बने। सन १९३६ से १९६१ तक उनका एक प्रमुख कर्य दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार करना रहा। उनक विवाह सूर्यकान्ता देवी से हुआ। उनके तीन पुत्र और चार पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं।
सन् 1940 से 1942 ई0 तक भारत में महात्मा गांधी के नेतृत्व में व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन चला। उस काल में हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना स्वाधीनता-आन्दोलन का अविभाज्य अंग था। वे दक्षिण में स्वाधीनता आन्दोलन एवं हिन्दी का प्रचार-प्रसार परिपूरक थे। आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें बन्दी बनाया गया। मोटूरि सत्यनारायण जी ने जेल में रहकर हिन्दी प्रचार का कार्य जारी रखा। जेल से मुक्त होने पर आपने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक योजनाएँ बनाईं। इन योजनाओं में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल योजना, दक्षिण के साहित्य की प्रकाशन योजना एवं कला भारती की योजना आदि सर्वविदित हैं।
भारत की स्वतंत्रता के बाद आप राज्य सभा के मनोनीत सदस्य बने।
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के प्रचार संगठक, आंध्र-प्रान्तीय शाखा के प्रभारी, मद्रास (चेन्नै) की केन्द्र सभा के परीक्षा मंत्री, प्रचारमंत्री, प्रधानमंत्री (प्रधान सचिव), राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रथम मंत्री, भारतीय संविधान सभा के सदस्य, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य (प्रथम बार-१९५४ में), केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के संचालन के लिए सन १९६१ में भारत सरकार के शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित ‘केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल' के प्रथम अध्यक्ष, राज्य सभा के दूसरी बार मनोनीत सदस्य, केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल के दूसरी बार अध्यक्ष (१९७५ से १९७९)। उन्होने विज्ञानसंहिता नामक एक ग्रन्थ की रचना भी की। वे प्रयोजनमूलक हिन्दी के विचार के जनक थे।
भारत सरकार, अनेक विश्वविद्यालयों, दक्षिण भारत की हिन्दी प्रचार-प्रसार की संस्थाओं एवं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा सम्मानित।
विशेष उल्लेखनीय :-
१. पद्म भूषण १९६२ में (भारत सरकार)
२. डी. लिट्. (मानद) (आन्ध्र विश्वविद्यालय)
३. हिन्दी प्रचार-प्रसार एवं हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए ‘गंगा शरण सिंह पुरस्कार' प्राप्त विद्वानों में सर्वप्रथम है।
४. उनके सम्मान में केंद्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा प्रति वर्ष, भारतीय मूल के किसी विद्वान को विदेशों में हिंदी प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय कार्य के लिए, 'पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है।
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