पोरबन्दर (Porbandar) भारत के गुजरात राज्य के पोरबन्दर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यह महात्मा गाँधी और श्रीकृष्ण के मित्र, सुदामा, का जन्मस्थान है।
पोरबन्दर Porbandar પોરબંદર सुदामापुरी | |
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पोरबन्दर चौपाटी | |
निर्देशांक: 21°37′48″N 69°36′00″E / 21.63000°N 69.60000°E 69°36′00″E / 21.63000°N 69.60000°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | गुजरात |
ज़िला | पोरबन्दर ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 2,17,500 |
भाषा | |
• प्रचलित | गुजराती, सिन्धी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पोरबन्दर बहुत ही पुराना बंदरगाह हुआ करता था। पोरबन्दर में गुजरात का सबसे अच्छा समुंद्र किनारा है। पोरबंदर गुजरात राज्य के दक्षिण छोर पर अरब सागर से घिरा हुआ है। पोरबंदर जिले का निर्माण जूनागढ़ से हुआ था। पोरबंदर महात्मा गाँधीजी का जन्म स्थान है इसलिए स्वाभाविक रूप से पोरबंदर में उनके जीवन से जुड़े कई स्थान हैं जो आज दर्शनीय स्थलों में बदल चुके हैं। महाभारत काल में अस्मावतीपुर नाम से प्रसिद्ध पोरबंदर को 10वीं शताब्दी में पौरावेलाकुल कहा जाता था और बाद में इसे सुदामापुरी भी कहा गया।
पोरबंदर गुजरात राज्य का एक ऐतिहासिक ज़िला है। पोरबंदर उत्तर-पश्चिम में देवभूमि द्वारका, उत्तर-पूर्व में जामनगर, दक्षिण-पूर्व में जूनागढ़, पूर्व में राजकोट से और दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर से घिरा है।
महात्मा गाँधी के जन्म स्थल के रूप में प्रसिद्ध इस स्थान पर 16वीं शताब्दी के आसपास जेठवा राजपूतों का नियंत्रण था। ज़िला बनने से पहले पोरबंदर भूतपूर्व पोरबंदर रियासत (1785-1948) की राजधानी था। पोरबंदर में गाँधीजी का तिमंजिला पैतृक निवास है जहाँ ठीक उस स्थान पर एक स्वस्तिक चिन्ह बनाया गया है जहाँ गाँधीजी की माँ पुतलीबाई ने उन्हें जन्म दिया था। लकड़ी की संकरी सीढ़ी अभ्यागतों को ऊपरी मंजिल तक ले जाती है, जहाँ गाँधीजी का अध्ययन कक्ष है। गाँधीजी के जन्म की स्मृति को अमर बनाने के लिए 79 फीट ऊँची एक इमारत का निर्माण उस गली में किया गया जहाँ 2 अक्टूबर 1869 को बापू का जन्म हुआ था। कीर्तिमंदिर के पीछे नवी खादी है जहाँ गाँधीजी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी का जन्म हुआ था। पोरबंदर का महत्त्व केवल यहाँ तक सीमित नहीं है। भगवान श्री कृष्ण के बालसखा सुदामाजी भी यही के थे। इसलिए इसका महत्त्व सुदामापुरी के रूप में भी खास है।
पोरबंदर हवाईअड्डा और सबसे नजदीकी हवाईअड्डा जामनगर हवाईअड्डा है और अच्छे सड़क प्रसार की दृष्टि से राजकोट हवाईअड्डा नजदीक पड़ता है।
पोरबंदर रेलवे स्टेशन एक टर्मिनस (अंतिम स्टेशन) है। राजकोट और सोमनाथ के साथ-साथ हावड़ा, सांत्रागाची, दिल्ली सराई रोहिल्ला, मुजफ्फरनगर, सिकंदराबाद और कोचुवेली से पोरबंदर के लिए रेल सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
राज्य परिवहन की बसें पोरबंदर को ज़िले व राज्य के अन्य हिस्सों से जोड़ती हैं। इसके अलावा हर घंटे नरसंग टेकरी से गैर-वातानुकूलित के साथ-साथ आलिशान और वातानुकूलित निजी वॉल्वो बसे राजकोट और अहमदाबाद के लिए चलती रहती है, जिसका आरक्षण 'PayTM', 'RedBus' इत्यादि जैसी वेबसाइट पर उपलब्ध रहता है। राजकोट और अहमदाबाद देश के सभी शहरो से जुड़े हुए हैं।
पोरबंदर शहर भवन निर्माण में काम आने वाले पत्थरों के लिए विख्यात है और पोरबंदर में कई प्रकार के उत्पादन का काम भी होता है।
2001 की गणना के अनुसार पोरबंदर की कुल जनसंख्या 5,36, 854 थी और 2011 की गणना के अनुसार 5,86,062 थी।
पोरबंदर का गुजरात के पर्यटन स्थलों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पोरबंदर में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। पोरबंदर में महात्मा गाँधी का जन्म स्थान है इसलिए स्वाभाविक रूप से यहाँ उनके जीवन से जुड़े कई स्थान हैं जो आज दर्शनीय स्थलों में बदल चुके हैं। पोरबंदर में गुजरात का सबसे अच्छा समुद्र तट है।
कीर्ति मंदिर पोरबंदर का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। कीर्ति मंदिर में एक गाँधीवादी पुस्तकालय और प्रार्थना कक्ष है। अन्दर प्रवेश करते ही गांधीजी और कस्तूरबा के सम्पूर्ण कद के तैलिचित्र दिखाई देते है। कीर्ति मंदिर परिसर में गांधीजी के बचपन का घर है और कस्तूरबा का घर भी परिसर के पीछे है। लगभग सभी कक्ष के अन्दर गांधीजी की अलग अलग समय की तस्वीरें देखी जा सकती है।
घुमली गणेश मंदिर 10वीं शताब्दी के आरंभ में बना था। घुमली गणेश मंदिर गुजरात में आरंभिक हिन्दू वास्तुशिल्प का एक सुंदर नमूना है।
सूर्य मंदिर का निर्माण 6ठीं शताब्दी में हुआ था। सूर्य मंदिर पोरबंदर से 50 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। सूर्य मंदिर पश्चिम भारत के आरंभिक मंदिरों में से एक है जो आज भी विद्यमान हैं।
सुदामापुरी के मंदिर का निर्माण १९०२ से १९०७ के बीच यहाँ के जेठवा राजवंश ने किया था। यहाँ मंदिर प्रांगण में छोटीसी ८४ भूलभुलैया हैं, जो सुदामाजी के द्वारिका से वापसी के बाद अपनी कुटिया खोजने की बात को याद दिलाते है। सुदामाजी द्वारिका जाते समय एक मुठ्ठी तंदुल लेकर गए थे, आज भी मंदिर में तंदुल प्रसाद के तौर पर दिए जाते है।
माननीय भाईश्री रमेशभाई ओझा द्वारा संचालित संदीपनी विद्यानिकेतन एक आध्यात्मिक तौर पर चलाया जानेवाला विद्यालय है, जो हवाई-अड्डे से २ किमी दूर रांघावाव नामक गाँव के पास है। इस परिसर में हरिमंदिर है, जहां एक ही मंदिर में दाये से गणेश, चंद्रमौलीश्वर महादेव, राधाकृष्ण, लक्ष्मीनारायण, जानकीवल्लभ, करुणामयी माता और हनुमानजी के दर्शन होते है। मनोहर बगीचों और 'सायन्स गेलेरी' का अपना अदभुत सौन्दर्य है। शाम को आरती के बाद मंदिर पर रोशनी केंद्रित की जाती है, जो मन को आत्मविभोर बना देती है।
190 वर्ग किलोमीटर में फैला वर्धा वन्यजीव अभयारण्य पोरबंदर से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। वर्धा वन्यजीव अभयारण्य गुजरात के दो ज़िलों- पोरबंदर और जामनगर का हिस्सा है। वर्धा वन्यजीव अभयारण्य के चारों ओर से खेत, बंजर भूमि और जंगल से घिरा हुआ हैं। चीते और भेड़िए जैसे संकटग्रस्त जन्तु यहाँ पाए जाते हैं।
पोरबंदर पक्षी अभयारण्य पोरबंदर के बीचों बीच स्थित है। पोरबंदर पक्षी अभयारण्य 9 एकड़ में फैला हुआ है।
हुज़ूर महल एक विशाल इमारत है। हुज़ूर महल की छत लकड़ी की है और छत पर रेलिंग लगी हुई है।
दरबारगढ़ महल का निर्माण जेठवा शासक राणा सुल्तानजी प्रतिहार ने ई. 1671 से 1699 में पोरबंदर में किले का निर्माण करवाया। दरबारगढ़ महल का प्रवेश द्वार पत्थर का बना हुआ है जिस पर ख़ूबसूरत नक़्क़ाशी की गई है। दरबारगढ़ महल के द्वार के दोनों ओर ऊँची मीनारें और लकड़ी के विशाल दरवाजे हैं।
राणा सतरनजी ने सतरनजी चोरो का निर्माण ग्रीष्मकालीन निवास के रूप में करवाया था। सतरनजी चोरो तीन मंजिला इमारत है। सतरनजी चोरो का निर्माण राजपूत शैली में किया गया है।
जेठवा शासक राणा सुल्तानजी ई. 1671 से 1699 ने पोरबंदर में किले का निर्माण करवाया। भारत के स्वतंत्र होकर देशी राज्यों के विलीनीकरण तक पोरबंदर पर जेठवों का शासन रहा। आज भी इस क्षेत्र मे पांच हजार से उपर जेठवा परिहार राजपूत निवास कर रहे है। गया है।
माधवपुर तट गुजरात के सर्वाधिक सुंदर और रेतीले तटों में से एक है। माधवपुर तट नारियल के पेड़ से घिरे हुए सुंदर रेतीले तट है। माधवपुर तट के पास ही माधवरायजी का मंदिर है।
पोरबंदर तट गुजरात के प्रमुख समुद्री तटों में से एक है। पोरबंदर तट वेरावल और द्वारिका के बीच स्थित एक सुंदर तट है। पोरबंदर तट गुजरात एक ऐसा तट है जहाँ अधिक छेड़छाड़ नहीं की गई है।
नेहरु तारामंडल सिटी सेंटर से 2 किलोमीटर दूर है। नेहरु तारामंडल में दोपहर में चलने वाली प्रदर्शनी गुजराती भाषा में होती है। नेहरु तारामंडल में दिन भर प्रदर्शनी चलती रहती हैं।
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