गुलजारीलाल नन्दा (4 जुलाई 1898 - 15 जनवरी 1998) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था। वे १९६४ में प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्युपश्चात् भारत के प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस पार्टी के प्रति समर्पित गुलज़ारी लाल नंदा प्रथम बार पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 में कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इनका कार्यकाल दोनों बार उसी समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया।
गुलजारीलाल नन्दा | |
भारत के वर्ष 1999 के डाक टिकट पर नन्दा का चित्र | |
भारत के प्रधानमंत्री (कार्यवाहक) | |
कार्यकाल 27 मई 1964 – 9 जून 1964 | |
पूर्ववर्ती | जवाहर लाल नेहरू |
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परवर्ती | लाल बहादूर शास्त्री |
कार्यकाल 11 जनवरी 1966 – 24 जनवरी 1966 | |
पूर्ववर्ती | लाल बहादूर शास्त्री |
परवर्ती | इन्दिरा गान्धी |
जन्म | 4 जुलाई 1898 सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान |
मृत्यु | 15 जनवरी, 1998 |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
नंदाजी के रूप में विख्यात गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को सियालकोट में हुआ था, और यह सेन परिवार से थे जो अब पश्चिमी पाकिस्तान का हिस्सा है। इनके पिता का नाम बुलाकी राम नंदा तथा माता का नाम श्रीमती ईश्वर देवी नंदा था। नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने लाहौर के 'फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज' तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। गुलज़ारी लाल नंदा ने कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि प्राप्त की। इनका विवाह 1916 में 18 वर्ष की उम्र में ही लक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हो गया था। इनके परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री सम्मिलित हुए।
गुलज़ारी लाल नंदा का भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान रहा। नंदा का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित था। 1921 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। नंदा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मुम्बई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। अहमदाबाद की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और 1922 से 1946 तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर गुज़ारा। यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का प्रयास करते रहे। 1932 में सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान और 1942-1944 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इन्हें जेल भी जाना पड़ा।
नंदा बॉम्बे की विधानसभा में 1937 से 1939 तक और 1947 से 1950 तक विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार मुम्बई सरकार में रहते हुए देखा। 1947 में 'इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की स्थापना हुई और इसका श्रेय नंदाजी को जाता है। मुम्बई सरकार में रहने के दौरान गुलज़ारी लाल नंदा की प्रतिभा को रेखांकित करने के बाद इन्हें कांग्रेस आलाक़मान ने दिल्ली बुला लिया। यह 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे। ऐसे में भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में इनका काफ़ी सहयोग पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्होंने निम्नवत् प्रकार से केन्द्रीय सरकार को सहयोग प्रदान किया-
गुलज़ारी लाल नंदा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रहे और स्वतंत्र मंत्रालयों का कार्यभार सम्भाला। नंदाजी ने योजना मंत्रालय का कार्यभार सितम्बर 1951 से मई 1952 तक निष्ठापूर्वक सम्भाला। नंदाजी ने योजना आयोग एवं नदी घाटी परियोजनाओं का कार्य मई 1952 से जून 1955 तक देखा। नंदाजी ने योजना, सिंचाई एवं ऊर्जा के मंत्रालयिक कार्यों को अप्रैल 1957 से 1967 तक देखा। नंदाजी ने श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय का कार्य मार्च 1963 से जनवरी 1964 तक सफलतापूर्वक देखा। गुलजारी लाल नंदा भारत सेवक समाज संस्थापकों में ऐसे नेता थे जिन्होंने केंद्रीय मंत्री रूप में ऐसे नेता साबित हुए जिन्होंने मिलावट और भ्रष्टाचार के विरुद्ध काफी सक्रिय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने मंत्रालयों में कई नीतियां दी जोकि इतिहास में प्ररेणा बन सके। 1963 -1966 में उनका गृहमंत्री के रूप संयुक्त सदाचार मिशन काफी प्ररेणा दायक रहा। उन्होंने लोकपाल के लिए रास्ता बनाने के लिए लोकायुक्त गठन के माध्यम से रास्ता देने की बेहतरीन दिशा प्रदान की।वे देश में वे 3 प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में गृहमंत्री का चर्चित इतिहास बने। जिन्होंने 2 साल में भरस्टाचार मुक्त देश देने की घोषणा लोकसभा में की थी या पद से हट जाने की घोषणा संकल्प के साथ की थी।
नंदाजी ने मंत्रिमण्डल में वरिष्ठतम सहयोगी होने के कारण दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री का दायित्व सम्भाला। इनका प्रथम कार्यकाल 27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक रहा, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था। दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा, जब लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में देहान्त हुआ। नंदाजी प्रथम पाँच आम चुनावों में लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
- समाज प्ररेणा के लिए स्वेच्छिक संस्थाओं का गठन किया-
देश आजाद होने के बाद जब वे राष्ट्रीय योजना समिति में आये तभी से उन्होंने गेर सरकारी संस्थाओं का चेहरा देने लिए भारत सेवकों का नेटवर्क तैयार किया जिसमे उन्होंने प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को भी प्रमुख पद पर बैठाया। भारत सेवक समाज और उसके बाद भारत साधु समाज की नीव रखी गयी। उन्होंने मानव धर्म मिशन -श्री सनातन महावीर दल, रास्ट्रीय लोक सेना, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड, भारतीय संस्कृति रक्षा संस्थान,नव जीवन संघ ,भारतीय जाग्रत समाज,श्री कृष्ण आयुर्वेदिक फार्मेसी, मानव धर्म सम्मेलन इत्यादि संस्थाएं दिल्ली कुरुक्षेत्र इंदौर मुंबई देश में 2 दर्जन संस्थाएं श्रमिक व औद्योगिक क्षेत्र में भी स्थापित की। नंदा जी ने अनेक संस्थाओं का गठन करते हुए कुरुक्षेत्र विकास मंडल को महाभारत रणभूमि के उजाड़ तीर्थों के काया कल्प के लिए योजना दी और इस संस्था का पंजीकरण 1968 1 अगस्त को किया। पुरे 22 साल इसके संस्थापक अध्यक्ष बतौर करिश्माई विकास से कुरुक्षेत्र के आधुनिक स्वरूप को विश्व मानचित्र में पहुंचाया।
नंदाजी ने एक लेखक की भूमिका अदा करते हुए कई पुस्तकों की रचना की। जिनके नाम इस प्रकार हैं- सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स, फॉर ए मौरल रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन।
गुलज़ारीलाल नन्दा को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न (1997) और दूसरा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया।
नंदा दीर्घायु हुए और 100 वर्ष की अवस्था में इनका निधन 15 जनवरी 1998 को हुआ। इन्हें एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता के रूप में सदैव याद रखा जाएगा।
भारत सेवक समाज सहित गुलज़ारीलाल नंदा अनगिनत संस्थाओं के पुरोधा -
गुलज़ारीलाल नंदा वृद्धावस्था के बावज़ूद 'भारत सेवक समाज' को अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे। यह संगठन उन्होंने स्वयं बनाया था और वह आजीवन इसकी देखरेख करते रहे। नंदाजी ने नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीति की थी। उम्र के अन्तिम पड़ाव पर पहुँचने के बाद उन्होंने राजनीति में हुए परिवर्तन को देश के लिए घातक बताया।
श्री नंदा के परम शिष्य श्री कृष्णराज अरुण जोकि देश म वरिष्ठ पत्रकार कंट्री एन्ड पॉलिटिक्स पत्रिका ,न्यूज़पेपर्स एसोसिएशन आफ इंडिया दिल्ली मुंबई ज़ोन के चेयरमेन हैं। उन्होने वर्षों से भारतरत्न नंदा की संस्थाओं मानव धर्म मिशन भारतीय लोक मंच से जुड़े रहे अनेक महत्वपूर्ण शोध किये वर्तमान में 3 दशक से गुलज़ारीलाल नंदा फॉउंडेशन का आदर्श चेहरा हैं का कहना हैकि सदाचार और नैतिकता के ध्वजा भारतरत्न नंदा की नीतियों को केंद्र सरकारों को अनुसंधान से जोड़ना चाहिए। नंदा मिशन से जुडी संस्थाओं में सक्रिय सादगी पूर्ण जीवन के आदि अनेक देशों में साइकिल यात्रा कर समाज कार्य अनुसन्सधान कर चुके कई विषयों के शोध समाज कर्मी व समाज विज्ञानी के रूप में अनेक राष्ट्रीय पुरुस्कारों से सम्मानित मिडिया जगत में खास भूमिका में चर्चित व्यक्तित्व हैं।
नंदा जी को प्रिय भगवान श्री कृष्ण जी के गीता ज्ञान तपोभूमि कुरुक्षेत्र के काया कल्प करने में पुरे 22 साल दिए।
वे कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड केडीबी के संस्थापक अध्यक्ष बतौर करिश्माई विकास का चेहरा आधुनिक तीर्थों के विकास निर्माता रूप में कुरुक्षेत्र के आधुनिक स्वरूप को विश्व मानचित्र में पहुंचाया। नंदाजी ने हरियाणा महिम को कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड केडीबी अपना दाइत्व सौंपते हुए अस्वस्थ होने के कारण अहमदाबाद अपनी बेटी के पास शेष दिन जीवन जिया- जबकि इस दरम्यान उनके आजीवन निजी सहायक रहे पीसी चिब कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के सदस्य के रूप में अहमदाबाद से नंदा जी की इच्छा अनुसार प्रसाशनिक गतिविधि में नंदा सिध्दांत को लागु करवाने में सहायक रहे। वे राधा स्वामी अध्यात्म से जुड़े रहे वे गुलज़ारीलाल नंदा फाउंडेशन के सर्वाधिकार अध्यक्ष उन्होंने संभाला। उनकी इच्छा पर ही नंदा के बेटे नरेंद्र नंदा फाउंडेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नंदा जी सिध्दांत को समर्पित जीवन देने वाले परम शिष्य कृष्ण राज अरुण गुलज़ारी लाल नंदा फाउंडेशन के सर्वाधिकार निर्णायक चेयरमेन के रूप बनाये गए बकायदा रजिस्ट्रार आफ सोसायटी दिल्ली को लिखित पत्र देकर पीसी चिब द्वारा निर्णायक समिति बनाई गयी जिसमे श्री अरुण के नैतिक सिध्दांत और उनके समर्पण को देखते हुए आजीवन उत्तरदाईत्व सौपा गया जिसकी सुचना कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड अध्यक्ष महामहिम हरियाणा राज भवन चंडीगढ़ को भी दी गयी।
स्मरण योग्य इतिहास में नंदा इतिहास गांधीवाद सदाचार नियम पालन निष्काम कर्म योगी नंदाजी योजना आयोग के उपाध्यक्ष रूप में उनका योगदान 3 पंचवर्षीय योजनाओं में योजना परिक्रिया निर्माता के रूप रहा है। वे 20 सदी में आजादी के बाद पंडित नेहरू युग शास्त्री युग इंद्रा युग में उनकी बेबाक राजनीति सदाचार जीवन के मायने लागू करवाने में एक के बाद एक अग्नि परीक्षा देते रहे।आजीवन किराये के मकान में रहकर उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश को सेवाएं दी। देश को राजनैतिक सदाचार का ध्वज देने वाले भारतरत्न नंदा ही थे। उजाड़ तीर्थों की विकास यात्रा में कुरुक्षेत्र को कायाकल्प रूप देकर गीता महत्व जागरण की नीव निर्माता नंदा जी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता।
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