असम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। असम भारत का एक सीमान्त राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। यह भारत की पूर्वोत्तर सीमा 24° 1' उ॰अ॰-27° 55' उ॰अ॰ तथा 89° 44' पू॰दे॰-96° 2' पू॰दे॰) पर स्थित है। सम्पूर्ण राज्य का क्षेत्रफल 78,466 वर्ग कि॰मी॰ है। भारत - भूटान तथा भारत - बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुड़ी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम, मेघालय तथा त्रिपुरा एवं पश्चिम में पश्चिम बंगाल स्थित है। लेखक सुनील कुमार मीना भगलाई (दोसा)
असम | |
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राज्य | |
ऊपर से बाएं से दाएं: ओरंग नेशनल पार्क में भारतीय गैंडे, अहोम राजा पैलेस, कामाख्या मन्दिर, रंग घर, आईआईटी गुवाहाटी, बोगीबील ब्रिज सील | |
ध्येय: जॉय आई एक्सोम (जय मां असम) | |
गान: "ओ मुर अपुनर देश"[1] (हे मेरे प्यारे देश) | |
निर्देशांक (दिसपुर, गुवाहाटी): 26°08′N 91°46′E / 26.14°N 91.77°E 91°46′E / 26.14°N 91.77°E | |
देश | भारत |
राज्य का दर्जा† | 26 जनवरी 1950 |
राजधानी | दिसपुर |
सबसे बड़ा शहर | गुवाहाटी |
जिले | : 35 |
शासन | |
• सभा | असम सरकार |
• राज्यपाल | जगदीश मुखी |
• मुख्यमंत्री | हिमंता बिस्वा सरमा (BJP) |
• विधानमण्डल | एकसदनीय
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• संसदीय क्षेत्र | राज्य सभा (7 सीटें) लोक सभा (14 सीटें) |
• उच्च न्यायालय | गुवाहाटी उच्च न्यायालय |
क्षेत्र | 78,438 किमी2 (30,285 वर्गमील) |
क्षेत्र दर्जा | 16वां |
ऊँचाई | 45-1960 मी (148-6430 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 3,11,69,272 |
• दर्जा | 15वां |
• घनत्व | 397 किमी2 (1,030 वर्गमील) |
GDP (2020-21) | |
• कुल | ₹3.74 लाख करोड़ (US$47 बिलियन) |
• प्रति व्यक्ति | ₹1,09,069 (US$1,592.41) |
भाषाएं | |
• राजभाषा | असमिया• बोड़ो• बंगाली |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+05:30) |
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोड | IN-AS |
मानव विकास सूचकांक (2018) | 0.614 medium · 30वां |
साक्षरता (2011) | 72.19% |
लिंगानुपात (2011) | 958 ♀/1000 ♂ |
वेबसाइट | assam |
† पहली बार 1 अप्रैल 1911 को एक प्रशासनिक प्रभाग के रूप में मान्यता प्राप्त हुई, और पूर्वी बंगाल और असम के प्रांत को विभाजित करके असम प्रांत की स्थापना की। ^[*] असम ब्रिटिश भारत के मूल प्रांतीय डिवीजनों में से एक था। ^[*] असम में 1937 से विधानमंडल है।. |
सामान्य रूप से माना जाता है कि असम नाम संस्कृत से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है, वो भूमि जो समतल नहीं है। कुछ लोगों की मान्यता है कि "आसाम" संस्कृत के शब्द "अस्म " अथवा "असमा", जिसका अर्थ असमान है का अपभ्रंश है। कुछ विद्वानों का मानना है कि 'असम' शब्द संस्कृत के 'असोमा' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय। आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जैसी विभिन्न जातियाँ प्राचीन काल से इस प्रदेश की पहाड़ियों और घाटियों में समय-समय पर आकर बसीं और यहाँ की मिश्रित संस्कृति में अपना योगदान दिया। इस तरह असम में संस्कृति और सभ्यता की समृद्ध परम्परा रही है।
कुछ लोग इस नाम की व्युत्पत्ति 'अहोम' (सीमावर्ती बर्मा की एक शासक जनजाति) से भी बताते हैं।
असम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़कर बांग्लादेश के पूर्व में स्थित भारत का सम्पूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था तथा उक्त नाम विषम भौम्याकृति के सन्दर्भ में अधिक उपयुक्त प्रतीत होता था क्योंकि हिमालय की नवीन मोड़दार उच्च पर्वतश्रेणियों तथा पुराकैब्रियन युग के प्राचीन भूखण्डों सहित नदी (ब्रह्मपुत्) निर्मित समतल उपजाऊ मैदान तक इसमें आते थे। परन्तु विभिन्न क्षेत्रों की अपनी संस्कृति आदि पर आधारित अलग अस्तित्व की माँगों के परिणामस्वरूप वर्तमान आसाम राज्य का लगभग 72 प्रतिशत क्षेत्र ब्रह्मपुत्र की घाटी (असम की घाटी) तक सीमित रह गया है जो पहले लगभग 40 प्रतिशत मात्र ही था।
प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में इस स्थान को प्रागज्युतिसपुर नाम से जाना जाता था। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार उषाने अपनी सखी चित्रलेखाद्वारा अनिरुद्धको अपहरण करवाया। यह बात यहाँ की दन्तकथाओं में भी पाया जाता है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ कुमार हरण के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन असम, कमरुप के रूप में जाना जाता है, यह शक्तिशाली राजवंशों का शासन था: वर्मन (350-650 ई॰) शाल्स्ताम्भस (655-900 ई॰) और कामरुप पाल (900-1100 ई॰). पुश्य वर्मन ने वर्मन राजवंश कि स्थापना की थी। भासकर वर्मन (600-650 ई॰), जो कि प्रसिद्ध वर्मन शासक थे, के शासनकाल में चीनी यात्री क्षुअन झांग क्षेत्र का दौरा किया और अपनी यात्रा दर्ज की।
बाद में, कमजोर और विघटन (कामरुप पाल) के बाद, कामरुप परम्परा कुछ हद तक बढ़ा दी गई चन्द्र (1120-1185 ई॰) मैं और चन्द्र द्वितीय (1155-1255 ई॰) राजवंशों द्वारा 1255 ई॰।
मध्यकाल में सन् 1228 में बर्मा के एक ताई विजेता चाउ लुंग सिउ का फा ने पूर्वी असम पर अधिकार कर लिया। वह अहोम वंश का था जिसने अहोम वंश की सत्ता यहाँ कायम की। अहोम वंश का शासन 1829 पर्यन्त तब तक बना रहा जब तक कि अंग्रेजों ने यनदबु ट्रीटी के दौरान असम का शासन हासिल किया।
भू आकृति के अनुसार असम राज्य को तीन विभागों में विभक्त किया जा सकता है :
इस राज्य की प्रमुख नदी ब्रह्मपुत्र (तिब्बत की सांगपी) है जो लगभग पूर्व पश्चिम में प्रवाहित होती हुई धुबरी के निकट बंगलादेश में प्रविष्ट हो जाती है। प्रवाहक्षेत्र के कम ढलवाँ होने के कारण नदी शाखाओं में विभक्त हो जाती है तथा नदीस्थित द्वीपों का निर्माण करती है जिनमें माजुली (129 वर्ग कि॰मी॰) विश्व का सबसे बड़ा नदी स्थित द्वीप है। वर्षाकाल में नदी का जलमार्ग कहीं कहीं 8 कि॰मी॰ चौड़ा हो जाता है तथा झील जैसा प्रतीत होता है। इस नदी की 35 प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। सुवंसिरी, भरेली, धनसिरी, पगलडिया, मानस तथा संकाश आदि दाहिनी ओर से तथा लोहित, नवदिहिंग, बूढ़ी दिहिंग, दिसांग, कपिली, दिगारू आदि बाई ओर से मिलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। ये नदियाँ इतना जल तथा मलबा अपने साथ लाती है कि मुख्य नदी गोवालपारा के समीप 50 लाख क्यूसेक जल का निस्सारण करती है। ब्रह्मपुत्र की ही भाँति सुवंसिरी आदि भी मुख्य हिमालय (हिमाद्री) के उत्तर से आती है तथा पूर्वगामी प्रवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती है। पर्वतीय क्षेत्र में इनके मार्ग में खड्ड तथा प्रपात भी पाए जाते हैं। दक्षिण में सूरमा ही उल्लेख्य नदी है जो अपनी सहायक नदियों के साथ कछार जनपद में प्रवाहित होती है।
भौमिकीय दृष्टि से आसाम राज्य में अति प्राचीन दलाश्म (नीस) तथा सुभाजा (शिस्ट) निर्मित मध्यवर्ती भूभाग (मिकिर तथा उत्तरी कछार) से लेकर तृतीय युग की जलोढ़ चट्टानें भी भूतल पर विद्यमान हैं। प्राचीन चट्टानों की पर्त उत्तर की ओर क्रमश: पतली होती गई है तथा तृतीयक चट्टानों से ढकी हुई हैं। ये चट्टानें प्राय: हिमालय की तरह के भंजों से रहित हैं। उत्तर में ये क्षैतिज हैं पर दक्षिण में इनका झुकाव (डिप) दक्षिण की ओर हो गया है।
भूकम्प तथा बाढ़ आसाम की दो प्रमुख समस्याएँ हैं। बाढ़ से प्राय: प्रतिवर्ष 8 से 10 करोड़ रुपए की माल की क्षति होती है। 1966 की बाढ़ से लगभग 16,000 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र जलप्लावित हुआ था। स्थल खण्ड के अपेक्षाकृत नवीन होने तथा चट्टानी स्तरों के अस्थायित्व के कारण इस राज्य में भूकम्प की सम्भावना अधिक रहती है। 1897 का भूकम्प, जिसकी नाभि गारो खासी की पहाड़ियों में थी, यहाँ का सबसे बड़ा भूकम्प माना जाता है। रेल लाइनों का उखड़ना, भूस्खलन, नदी मार्गावरोध तथा परिवर्तन आदि क्रियाएँ बड़े पैमाने पर हुई थीं और लगभग 10,550 व्यक्ति मर गए थे। अन्य प्रमुख भूकंप क्रमश: 1869, 1888, 1930, 1934 तथा 1950 में आए।
सामान्यतः असम् राज्य की जलवायु, भारत के अन्य भागों की भाँति, मानसूनी है पर कुछ स्थानीय विशेषताएँ इसमें विश्लेषणोपरान्त अवश्य दृष्टिगोचर होती हैं। प्राय: पाँच कारक इसे प्रभावित करते हैं :
गंगा के मैदान की भाँति यहाँ ग्रीष्म की भीषणता का अनुभव नहीं होता क्योंकि प्राय: बूँदाबाँदी तथा वर्षा हो जाया करती है। कोहरा, बिजली की चमक दमक तथा धूल के तूफान प्राय: आते रहते हैं। वर्ष में 60-70 दिन कोहरा तथा 80-115 दिन बिजली की कड़वाहट अनुभव की जाती है। औसत वार्षिक वर्षा 200 सें॰मी॰ होती है पर मध्य भाग (गौहाटी, तेजपुर) में यह मात्रा 100 से॰मी॰ से भी कम होती है जबकि पूर्व एवं पश्चिम में कहीं कहीं 1,000 से॰मी॰ तक भी वर्षा होती है। सापेक्ष आर्द्रता वर्ष भर अधिक रहती है (90 प्रतिशत)। जाड़े का औसत तापमान 12.8° सें॰ग्रे॰ तथा ग्रीष्म का औसत तापमान 23° सें॰ग्रे॰ रहता है। अधिकतम तापमान वर्षा ऋतु के अगस्त महीने में रहता है (27.17° सें॰ग्रे॰)।
काँप तथा लैटराट इस राज्य की प्रमुख मिट्टियाँ हैं जो क्रमश: मैदानी भागों तथा पहाड़ी क्षेत्रों के ढालों पर पाई जाती हैं। नई काँप मिट्टी नदियों के बाढ़ क्षेत्र में पाई जाती है तथा धान, जूट, दाल एवं तिलहन के लिए उपयुक्त है। यह प्राय: उदासीन प्रकृति की होती है। बाढ़ेतर प्रदेश की वागर मिट्टी प्राय: अम्लीय होती है। यह गन्ना, फल, धान के लिए अधिक उपुयक्त है। पर्वतीय क्षेत्र की लैटराइट मिट्टी अपेक्षाकृत अनुपजाऊ होती है। चाय की कृषि के अतिरिक्त ये क्षेत्र प्राय: वनाच्छादित हैं।
तृतीय युग का कोयला तथा खनिज तेल इस प्रदेश की मुख्य सम्पदाएँ हैं। खनिज तेल का अनुमानित भण्डार 450 लाख टन है जो पूरे भारत का लगभग 50 प्रतिशत है तथा प्रमुखतः बह्मपुत्र की ऊपरी घाटी में दिगबोई, नहरकटिया, मोशन, लक्वा, टियोक आदि के चतुर्दिक् प्राप्य है। राज्य के दक्षिणपूर्वी छोर पर लकड़ी लेड़ी नजीरा के निकट कोयले का भण्डार है। अनुमानित भण्डार 33 करोड़ टन है। उत्पादन क्रमश: कम होता जा रहा है। (1963 से 5,77,000 टन; 1965 में 5,41,000 टन)। फायर क्ले, गृह-निर्माण-योग्य पत्थर आदि अन्य खनिज हैं।
असम एक कृषिप्रधान राज्य है। 1970-71 में कुल (मिजोरमयुक्त) लगभग 25,50,000 हेक्टेयर भूमि (कुल क्षेत्रफल का लगभग 1/3) कृषिकार्य कुल भूमि का 90 प्रतिशत मैदानी भाग में है। धान (1971) कुल भूमि (कृषियोग्य) के 72 प्रतिशत क्षेत्र में पैदा किया जाता है (20,00,000 हेक्टेयर) तथा उत्पादन 20,16,000 टन होता है। अन्य फसलें (क्षेत्रपफल 1,000 हेक्टेयर में) इस प्रकार हैं- गेहूँ 21; दालें 79; सरसों तथा अन्य तिलहन 139। कुल कृषिभूमि का 77 प्रतिशत खाद्य फसलों के उत्पादन में लगा है। इतना होते हुए भी प्रति व्यक्ति कृषिभूमि का औसत 0.5 एकड़ (0.2 हेक्टेयर) ही है। विभिन्न साधनों द्वारा भूमि को सुधारने के उपरान्त कृषि क्षेत्र को पाँच प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है।
चाय, जूट तथा गन्ना यहाँ की प्रमुख औद्योगिक तथा धनद फसलें हैं। चाय की कृषि के अन्तर्गत लगभग 65 प्रतिशत कृषिगत भूमि सम्मिलित है। आसाम के आर्थिक तन्त्र में इसका विशेष हाथ है। भारत की छोटी बड़ी 7,100 चाय बागान में से लगभग 700 असम में ही स्थित हैं। 1970 ई॰ में कुल 2,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र में चाय के बाग थे जिनसे लगभग 21,5 करोड़ कि॰ग्रा॰ (1970) चाय तैयार की गई। इस उद्योग में प्रतिदिन 3,79,781 मजदूर लगे हैं, जिनमें अधिकांश उत्तर बिहार तथा पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के हैं। जूट लगभग छह प्रतिशत कृषियोग्य भूमि में उगाई जाती है। आर्थिक दृष्टिकोण से यह अधिक महत्वपूर्ण है। आसाम घाटी के पूर्वी भाग तथा दरंग जनपद इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। 1970 ई॰ में यहाँ की नदियों में से 26.5 हजार टन मछलियाँ भी पकड़ी गईं।
वर्षा की अधिकता के कारण सिंचाई की व्यवस्था व्यापक रूप से लागू नहीं की जा सकी, केवल छोटी-छोटी योजनाएँ ही क्रियान्वित की गई हैं। कुल कृषिगत भूमि का मात्र 22 प्रतिशत ही सिंचित है। 1964 में प्रारम्भ की गई जमुना सिंचाई योजना (दीफू के निकट) इस राज्य की सबसे बड़ी योजना है जिससे लगभग 26,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाने का अनुमान है। नहरों की कुल लम्बाई 137.15 कि॰मी॰ रहेगी।
राज्य के प्रमुख शक्ति-उत्पादक-केन्द्र (क्षमता तथा स्वरूप के साथ) ये हैं - गुवाहाटी (तापविद्युत्) 32,500 किलोवाट, नामरूप (तापविद्युत्) लखीमपुर में नहरकटिया से 20 कि॰मी॰, 23,000 किलोवाट का प्रथम चरण 1965 में पूर्ण। 30,000 किलोवाट का दूसरा चरण 1972-73 तक पूर्ण। जलविद्युत् केन्द्रों में यूनिकेम प्रमुख है (पूरी क्षमता 72,000 किलोवाट)।
आसाम के आर्थिक तन्त्र में उद्योग धन्धों में, विशेष रूप से कृषि पर आधारित, तथा खनिज तेल का महत्वपूर्ण योगदान है। गुवाहाटी तथा डिब्रूगढ़ दो स्थान इसके मुख्य केन्द्र हैं। कछार का सिलचर नगर तीसरा प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। चाय उद्योग के अतिरक्ति वस्त्रोद्योग (शीलघाट, जूट तथा जारीरोड सिल्क) भी यहाँ उन्नत है। हाल ही में एक कपड़ा मिल गौहाटी में स्थापित की गई है। एरी, मूगा तथा पाट आसाम के उत्कृष्ट वस्त्रों में हैं। तेलशोधक कारखाने दिगबोई (पाँच लाख टन प्रति वर्ष) तथा नूनमाटी (7.5 लाख टन प्रति वर्ष) में है। उर्वरक केन्द्र नामरूप में हैं जहाँ प्रतिवर्ष 2,75,000 टन यूरिया तथा 7,05,000 टन अमोनिया का उत्पादन किया जाता है। चीरा में सीमेण्ट का कारखाना है जहाँ प्रतिवर्ष 54,000 टन सीमेण्ट का उत्पादन होता है। इनके अतिरिक्त वनों पर आधारित अनेक उद्योग धन्धे प्राय: सभी नगरों में चल रहे हैं। धुबरी की हार्डबोर्ड फैक्टरी तथा गुवाहाटी का खैर तथा आगर तैल विशेष उल्लेखनीय हैं।
आवागमन तथा यातायात के साधनों के सुव्यवस्थित विकास में इस प्रदेश के उच्चावचन तथा नदियों का विशेष महत्त्व है। आसाम घाटी उत्तरी दक्षिणी भाग को स्वतन्त्र भारत में एक दूसरे से जोड़ दिया गया है। गौहाटी के निकट यह सम्पूर्ण ब्रह्मपुत्र घाटी का एक मात्र सेतु है। 1966 में रेलमार्गों की कुल लम्बाई 5,827 कि॰मी॰ थी (3,334 कि॰मी॰ साइडिंग के साथ)। धुबरी, गौहाटी, लामडि, सिलचर आदि रेलमार्ग द्वारा मिले हुए हैं। राजमार्ग कुल 20,678 कि॰ मी॰ है जिसमें राष्ट्रीय मार्ग 2,934 कि॰मी॰ (1968) है। यहाँ जलमार्गों का विशेष महत्त्व है और ये अति प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहे हैं। नौकावहन-योग्य नदियों की लंबाई 3,261 कि॰ मी॰ है जिसमें 1653 कि॰मी॰ मार्ग स्टीमर चलने योग्य है तथा वर्ष भर उपयोग में लाए जा सकते हैं। शेष मात्र मानसून के दिनों में ही काम लायक रहते हैं।
असम में छह से बारह वर्ष की उम्र तक के बच्चों के लिए माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य तथा नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। गुवाहाटी, जोरहाट, तेजपुर, सिलचर एवं डिब्रूगढ़ में विश्वविद्यालय हैं। राज्य के 80 से भी ज़्यादा केन्द्रों से लोक कल्याण की विभिन्न योजनाओं का संचालन हो रहा है। जो महिलाओं एवं बच्चों के लिए मनोरंजन तथा अन्य सांस्कृतिक सुविधाओं की व्यवस्था करती हैं।
विश्वविद्यालय | स्थान | स्थापित | श्रेणी | शिक्षा |
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डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय | डिब्रूगढ़ | 1965 | राज्य सरकार | विभिन्न |
गुवाहाटी विश्वविद्यालय | गुवाहाटी | 1948 | राज्य सरकार | विभिन्न |
कॉटन विश्वविद्यालय | गुवाहाटी | 1901 | राज्य सरकार | विभिन्न |
कृष्णकान्त हैण्डीकी स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी | गुवाहाटी | 2007 | राज्य सरकार | दूरस्थ शिक्षा |
शंकरदेव आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय | गुवाहाटी | 2010 | राज्य सरकार | स्वास्थ्य विज्ञान |
असम कृषि विश्वविद्यालय | जोरहाट | 1968 | राज्य सरकार | कृषि |
काजीरंगा विश्वविद्यालय | जोरहाट | 2012 | निजी | विभिन्न |
असम डाउन टाउन विश्वविद्यालय | गुवाहाटी | 2010 | निजी | विभिन्न |
असम डॉन बोस्को विश्वविद्यालय | गुवाहाटी | 2009 | निजी | विभिन्न |
असम विश्वविद्यालय | सिलचर | 1994 | केन्द्रीय | विभिन्न |
तेजपुर विश्वविद्यालय | तेजपुर | 1994 | केन्द्रीय | विभिन्न |
इंजीनियरिंग कॉलेज-
मेडिकल कॉलेज-
असमिया और बोडो प्रमुख क्षेत्रीय और आधिकारिक भाषाएँ हैं। बंगाली बराक घाटी के तीन जिलों में आधिकारिक दर्जा रखती है और राज्य की दूसरी सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा (३३.९१%) है। असमिया प्राचीन कामरूप और मध्ययुगीन राज्यों जैसे कलिता, कामतापुर कछारी, सुतीया, बोरही, अहोम और कोच राज्यों में लोगों कि आम भाषा रही है। 7वीं–8वीं ई. में लिखी गई लुइपा, सरहपा जैसे कवियों के कविताओं में असमिया भाषा के निशान पाए जाते हैं। कामरूपी, ग्वालपरिया जैसे आधुनिक बोलियाँ इसकी अपभ्रंश हैं। असमिया भाषा को नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर में स्थानीकृत करके इस्तेमाल किया जाता रहा है। असमिया उच्चारण और कोमलता की अपनी अनूठी विशेषताओं के साथ अपने संकर प्रकृति की वजह से एक समृद्ध भाषा है। असमिया साहित्य सबसे अमीर साहित्यों में से एक है।
2001 की जनगणना के अनुसार, यहाँ हिन्दुओं की संख्या 1,72,96,455, मुसलमानों की 82,40,611, ईसाई की 9,86,589 और सिखों की 22,519, बौद्धों की 51,029, जैनियों की 23,957 और 22,999 अन्य धार्मिक समुदायों से सम्बन्धित थे।
असम से भारत का सर्वाधिक खनिज तेल प्राप्त होता है। यहाँ लगभग 1000 किलोमीटर लम्बी पेटी में खनिज तेल पाया जाता है। यह पेटी इस राज्य की उत्तरी-पूर्वी सीमा से आरम्भ होकर खासी तथा जयन्तिया पहाड़ियों से होती हुई कछार जिले तक फैली है। यहाँ के मुख्य तेल क्षेत्र तिनसुकिया, डिब्रुगड़ तथा शिवसागर जिलों में पाया जाते हैं।
असम में शिल्प की एक समृद्ध परम्परा रही है, वर्तमान केन और बाँस शिल्प, घण्टी धातु और पीतल शिल्प रेशम और कपास बुनाई, खिलौने और मुखौटा बनाने, मिट्टी के बर्तनों और मिट्टी काम, काष्ठ शिल्प, गहने बनाने, संगीत बनाने के उपकरणों, आदि के रूप में बना रहा प्रमुख परम्पराओं [56] ऐतिहासिक, असम भी लोहे से नावों, पारम्परिक बन्दूकें और बारूद, हाथीदाँत शिल्प, रंग और पेंट, लाख, agarwood उत्पादों की लेख, पारंपरिक निर्माण सामग्री, उपयोगिताओं बनाने में उत्कृष्ट आदि केन और बाँस शिल्प के दैनिक जीवन में सबसे अधिक इस्तेमाल किया उपयोगिताओं, घरेलू सामान से लेकर, उपसाधन बुनाई, मछली पकड़ने का सामान, फर्नीचर, संगीत वाद्ययन्त्र, निर्माण सामग्री, आदि उपयोगिताएँ और Sorai और Bota जैसे प्रतीकात्मक लेख घण्टी धातु और पीतल से बने प्रदान हर असमिया घर में पाया [57] [58] हाजो और Sarthebari पारम्परिक घण्टी धातु और पीतल के शिल्प का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्रों में कर रहे हैं। असम रेशम के कई प्रकार के घर है, सबसे प्रतिष्ठित हैं: मूगा - प्राकृतिक सुनहरे रेशम, पैट - एक मलाईदार उज्ज्वल चाँदी के रंग का रेशम और इरी - एक सर्दियों के लिए गर्म कपड़े के विनिर्माण के लिए इस्तेमाल किया किस्म। सुआल्कुची (Sualkuch), पारम्परिक रेशम उद्योग के लिए केन्द्र के अलावा, ब्रह्मपुत्र घाटी के लगभग हर हिस्से में ग्रामीण परिवार उत्कृष्ट कढ़ाई डिजाइन के साथ रेशम और रेशम के वस्त्र उत्पादन करते हैं। इसके अलावा, असम में विभिन्न सांस्कृतिक समूह अद्वितीय कढ़ाई डिजाइन और अद्भुत रंग संयोजन के साथ सूती वस्त्रों के विभिन्न प्रकार बनाते हैं।
इसके अलावा असम में खिलौना और मुखौटा आदि बनाने का एवं ज्यादातर वैष्णव मठों में मिट्टी के बर्तनों और निचले असम जिलों में काष्ठ शिल्प, लौह शिल्प, गहने, मिट्टी के काम आदि का अद्वितीय शिल्प लोगों के पास है।
पुरातन मौर्य गोलपाड़ा जिले में और उसके आस-पास की खोज स्तूप प्राचीन कला और वास्तु काम करता है (सी॰ 300 सी॰ 100 ई॰ के लिए ई॰पू॰) के जल्द से जल्द उदाहरण हैं। तेजपुर में एक सुन्दर चौखट प्राचीन असम में देर गुप्ता अवधि के कला के सारनाथ स्कूल के प्रभाव के साथ कला का काम करता है सबसे अच्छा उदाहरण के रूप में पहचान कर रहे हैं के साथ Daparvatiya (Doporboteeya) पुरातात्विक स्थल की खोज की बनी हुई है। कई अन्य साइटों को भी स्थानीय रूपांकनों और दक्षिण पूर्व एशिया में उन लोगों के साथ समानता के साथ कभी कभी के साथ स्थानीय कला रूपों के विकास दिखा रहे हैं। वर्तमान से अधिक की खोज कई मूर्तिकला और वास्तुकला के साथ रहता चालीस प्राचीन पुरातात्विक असम भर में साइटों। इसके अलावा, वहाँ कई देर मध्य आयु कला और कई शेष मन्दिरों, महलों और अन्य इमारतों के साथ मूर्तियाँ और रूपांकनों के सैकड़ों सहित वास्तु काम करता है के उदाहरण हैं।
चित्रकारी असम के एक प्राचीन परम्परा है। Xuanzang (7 वीं शताब्दी ई.) का उल्लेख है कि हर्षवर्धन के लिए कामरुपा राजा भासकर वर्मन उपहार के बीच चित्रों और चित्रित वस्तुओं, असमिया रेशम पर थे जिनमें से कुछ थे। Hastividyarnava (हाथी पर एक ग्रन्थ), चित्रा भागवत और गीता गोविन्दा से मध्य युग में जैसे पाण्डुलिपियों के कई पारम्परिक चित्रों के उत्कृष्ट उदाहरण सहन. मध्ययुगीन असमिया साहित्य भी chitrakars और patuas करने के लिए सन्दर्भित करता है।
असम की आदिम जातियाँ सम्भवत: आर्य तथा मंगोलीय जत्थे के विभिन्न अंश हैं। यहाँ के जातियों को कई समूहों में विभाजित की जा सकती है। प्रथम ब्राह्मण, कलिता (कायस्थ), नाथ (योगी) इत्यादि हैं जो आदिकाल में उत्तर भारत से आए हुए निवासियों के अवशेष मात्र हैं। दूसरे समूह के अन्तर्गत आर्य-मंगोलीय एवं मंगोलीय जनसमस्ति जैसे के आहोम, सुतिया, मरान, मटक, दिमासा (अथवा पहाड़ी कछारी), बोडो (या मैदानी कछारी), राभा, तिवा, कार्बी, मिसिंग, ताई, ताई फाके तथा कुकी जातियाँ हैं। इन में से बहुत सारे जातियाँ असम के ऊपरी जिलों (उजनि) में रहते हैं और अन्य जातियाँ आसाम के निचले भागों (नामोनि) में रहते हैं। नामोनि के कोच जाती असम के एक प्रमुख जाती है जो गोवालपारा, धुबूरी इत्यादि राज्यों में ये राजवंशी के नाम से प्रसिद्ध हैं। कोइवर्त्त यहाँ की मछली मारने वाली जाति है। आधुनिक युग में यहाँ पर चाय के बाग में काम करनेवाले बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा अन्य प्रांतों से आए हुए जातियाँ और आदिवासी भी असमिया मूलस्रोत के अंश बन गए हैं। इन सब जातियाँ समन्वित हो कर असमिया नाम के अखण्ड जाती को जन्म दिया है। साथ ही साथ, सभी जातियों के विचित्र परम्पराएँ मिलकर भी एक अतुलनीय संस्कृति सृष्ट हुवे जिसका नाम असमिया संस्कृति है जो की पूरे भारत में विरल है।
असम में ३५ जनपद हैं -
वर्तमान असम बाढ़, गरीबी, पिछड़ेपन और सबसे बड़े कारण फासीवादी विचारधारा और दंगावादी से ग्रस्त है।
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