स्वलीनता (ऑटिज़्म) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिन्दी में इसे 'आत्मविमोह' और 'स्वपरायणता' भी कहते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने से पहले ही शुरु हो जाता है। इन लक्षणों का समुच्चय (सेट) आत्मविमोह को हल्के (कम प्रभावी) आत्मविमोह स्पेक्ट्रम विकार (ASD) से अलग करता है, जैसे एस्पर्जर सिंड्रोम।
आत्मविमोह वर्गीकरण व बाहरी संसाधन | |
एक ही कार्य के बारंबार दोहराव आत्मविमोह का कारण बनता है | |
आईसीडी-१० | F84.0 |
आईसीडी-९ | 299.00 |
ओ.एम.आई.एम | 209850 |
रोग डाटाबेस | 1142 |
मेडलाइन+ | 001526 |
ई-मेडिसिन | med/3202 ped/180 |
एमईएसएच | D001321 |
ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से ही या बाल्यावस्था से नज़र आने लगतें हैं। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो की अपेक्षा असामान्य होता है।
ऑटिज़्म या स्वलीन होने के कोई एक कारण नहीं खोजा जा सका है। अनुशोधों के अनुसार ऑटिज़्म होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि: -
स्वलीनता का एक मजबूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि स्वलीनता की आनुवंशिकी जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है कि ASD का कारण बहुजीन संवाद (multigene interactions) है या दुर्लभ उत्परिवर्तन (म्यूटेशन)। दुर्लभ मामलों में, स्वलीनता को उन कारकों से भी जोड़ा गया है जो जन्म संबंधी दोषों के लिये उत्तरदायी है।
अन्य प्रस्तावित कारणों मे, बचपन के टीके, विवादास्पद हैं और इसके कोई वैज्ञानिक सबूत भी नहीं है। हाल की एक समीक्षा के अनुमान के मुताबिक प्रति 1000 लोगों के पीछे दो मामले स्वलीनता के होते हैं, जबकि से संख्या ASD के लिये 6/1000 के करीब है। औसतन ASD का पुरुष:महिला अनुपात 4,3:1 है। 1980 से स्वलीनता के मामलों में नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र में हुआ विकास है लेकिन क्या असल में ये मामले बढे़ है यह एक उनुत्तरित प्रश्न है।
स्वलीनता मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करती है, पर इसके कारणों को ढंग से नहीं समझा जाता। आमतौर पर माता पिता अपने बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों में ही इसके लक्षणों को भाँप लेते हैं।
शुरुआती संज्ञानात्मक या व्यवहारी हस्तक्षेप, बच्चों को स्वयं की देखभाल, सामाजिक और बातचीत कौशल के विकास में सहायता कर सकते हैं। इसका कोई इलाज नहीं है। बहुत कम स्वलीन बच्चे ही वयस्क होने पर आत्मनिर्भर होने में सफल हो पाते हैं। आजकल एक स्वलीनता संस्कृति विकसित हो गयी है, जिसमे कुछ लोगों को इलाज पर विश्वास है और कुछ लोगों के लिये स्वलीनता एक विकार होने के बजाय एक स्थिति है।
आत्मविमोह को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं सामाजिक संपर्क में असमर्थता, बातचीत करने में असमर्थता, सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार है। अन्य पहलुओं मे, जैसे खाने का अजीब तरीका हालाँकि आम है लेकिन निदान के लिए आवश्यक नहीं है।
सामाजिक विकास आत्मविमोह के शिकार मनुष्य सामाजिक व्यवहार में असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने में भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते।
सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरु हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है।
आत्मविमोह से ग्रसित बच्चे आम बच्चो के मुकाबले कम संलग्न सुरक्षा का प्रदर्शन करते हैं (जैसे आम बच्चे माता पिता की मौजूदगी में सुरक्षित महसूस करते हैं) यद्यपि यह लक्षण उच्च मस्तिष्क विकास वाले या जिनका ए एस डी कम होता है वाले बच्चों में गायब हो जाता है। ASD से ग्रसित बड़े बच्चे और व्यस्क चेहरों और भावनाओं को पहचानने के परीक्षण में बहुत बुरा प्रदर्शन करते हैं।
आम धारणा के विपरीत, आटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद नहीं करते। दोस्त बनाना और दोस्ती बनाए रखना आटिस्टिक बच्चे के लिये अक्सर मुश्किल साबित होता है। इनके लिये मित्रों की संख्या नहीं बल्कि दोस्ती की गुणवत्ता मायने रखती है। ASD से पीडित लोगों के गुस्से और हिंसा के बारे में काफी किस्से हैं लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन बहुत कम हैं। यह सीमित आँकडे बताते हैं कि आत्मविमोह के शिकार मंद बुद्धि बच्चे ही अक्सर आक्रामक या उग्र होते है। डोमिनिक एट अल, ने 67 ASD से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता का साक्षात्कार लिया और निष्कर्श निकाला कि, दो तिहाई बच्चों के जीवन में ऎसे दौर आते हैं जब उनका व्यवहार बहुत बुरा (नखरे वाला) हो जाता है जबकि एक तिहाई बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, अक्सर भाषा को ठीक से न जानने वाले बच्चे नखरैल होते हैं।
बाल्यावस्था में सामान्य बच्चों व ऑटिस्टिक बच्चों में कुछ प्रमुख अंतर होते हैं जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे कि-
एक तिहाई से लेकर आधे ऑटिस्तिक व्यक्तियों में अपने दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लायक भाषा बोध तथा बोलने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती। संचार में कमियाँ जीवन के पहले वर्ष में ही दृष्टिगोचर हो जाती हैं जिनमे शामिल है, देर से बोलना, असामान्य भाव, मंद प्रतिक्रिया और अपने पालक के साथ हुये वार्तालाप में सामंजस्य का नितांत आभाव।
दूसरे और तीसरे साल में, ऑटिस्टिक बच्चे कम बोलते हैं, साथ ही उनका शब्द संचय और शब्द संयोजन भी विस्तृत नहीं होता। उनके भाव अक्सर उनके बोले शब्दों से मेल नहीं खाते। आटिस्टिक बच्चों में अनुरोध करने या अनुभवों को बाँटने की संभावना कम होती है और उनमें बस दूसरों की बातें को दोहराने की संभावना अधिक होती है (शब्दानुकरण)।
कार्यात्मक संभाषण के लिए संयुक्त ध्यान आवश्यक होता है और इस संयुक्त ध्यान में कमी, ASD शिशुओं को अन्यों से अलग करता है : उदाहरण: हो सकता है बजाय उस वस्तु को जिसकी ओर वो इशारा कर रहे हैं वो उस हाथ को देखें जिससे वो इशारा कर रहे हैं और वो लगातार ऎसा करने में विफल हो रहे हों। ऑटिस्टिक बच्चों को कल्पनाशील खेलों में और भाषा सीखने में कठिनाई हो सकती है।
कोई एक खास दोहराव आत्मविमोह से संबधित नहीं है, लेकिन आत्मविमोह इन व्यवहारों के लिये उत्तरदायी है।
ऑटिज़्म को शीघ्र पहचानना और मनोरोग विशेषज्ञ से तुरंत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज है। ऑटिज़्म के लक्ष्ण दिखने पर मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, या प्रशिक्षित स्पेशल एजुकेटर (विशेष अध्यापक) से सम्पर्क करें। ऑटिज़्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है जिसके पूर्ण उपचार के लिए कोई दवा की खोज ज़ारी है, अतः इसके इलाज के लिए यहाँ-वहाँ न भटकें व बिना समय गवाएं इसके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
ऑटिज़्म एक प्रकार की विकास सम्बंघित बीमारी है जिसे पूरी तरह तो ठीक नहीं किया जा सकता, परन्तु सही प्रशिक्षण व परामर्श के द्वारा रोगी को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है, जो उसे अपने रोज के जीवन में अपनी देखरेख करने में मदद करता है।
ऑटिज़्म से ग्रसित 70% वयक्तियों में मानसिक मन्दता पायी जाती है जिसके कारण वह एक सामान्य जीवन जीने में पूरी तरह से समर्थ नहीं हो पाते, परन्तु यदि मानसिक मन्दता बहुत अघिक न हो तो ऑटिज़्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सीख पाता है। कभी-कभी इन बच्चों में कुछ ऐसी काबिलियत भी देखी जाती हैं जो सामान्य वयक्तियों की समझ व पहुच से दूर होती हैं।
ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे को निम्नलिखित तरीकों से मदद दी जा सकती है-
यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे कुछ ऐसी गतिविधियों में लगाएं जो उसे व्यस्त रखें ताकि वे व्यवहार दोहरा न सके,
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