सरकार कुछ निश्चित व्यक्तियों का समूह होती है जो राष्ट्र तथा राज्यों में निश्चित काल के लिए तथा निश्चित पद्धति द्वारा शासन करता है। प्रायः इसके तीन अंग होते हैं - विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका। सरकार के माध्यम से राज्य में राजशासन नीति लागू होती है। सरकार के तंत्र का अभिप्राय उस राजनितिक व्यवस्था से होता है जिसके द्वारा राज्य की सरकार को जाना जाता है। राज्य निरन्तर बदलती हुयी विधायिका द्वारा प्रशासित होते हैं। हर नई विधायिका कुछ व्यक्तियों का समूह होती है जो राजनितिक नीतियां बनाती हैं, जिनके आधार पर कार्यपालिका फ़ैसले लेती है या उनपर नियन्त्रण रखती है। विधायिका का कार्य नए कानून बनाना, कार्यपालिका का कार्य कानूनों को लागू रखना तथा न्यायपालिका का कार्य झगड़ों में मध्यस्थता करना होता है। कुछ समाजों में यह समूह आत्म-मनोनीत या वंशानुगत होता है। बाकी समाजों में, जैसे लोकतंत्र, विधायिका का निर्वाह निरन्तर बदलते हुये व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। संसदीय पद्धति में सरकार का अभिप्राय राष्ट्रपतीय पद्धति के अधिशासी शाखा से होता है। इस पद्धति में राष्ट्र में प्रधान मन्त्री एवं मन्त्री परीषद् तथा राज्य में मुख्य मन्त्री एवं मन्त्री परीषद् कार्यपालिका के सदस्य होते हैं। पाश्चात् देशों में सरकार और तंत्र में साफ़ अन्तर है। जनता द्वारा विधायिका का दोबारा चयन न करना इस बात को नहीं दर्शाता है कि जनता अपने राज्य के तंत्र से नाख़ुश है। लेकिन कुछ पूर्णवादी शासन पद्धतियों में यह भेद इतना साफ़ नहीं है। इसका कारण यह है कि वहाँ के शासक अपने फ़ायदे के लिये यह लकीर मिटा देते हैं।
उम्मीदवार प्रजा के मत द्वारा चुना गया हो लोक-तंत्र कहते हैं
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