व्याख्यान शास्त्र या वाग्मिता-शास्त्र ( Rhetoric ) उस कला को कहते हैं जिसमें लेखकों और वक्ताओं की जानकारी प्रदान करने, भावनाएँ व्यक्त करने और श्रोताओं को भिन्न उद्देश्यों के लिए प्रेरित करने की क्षमता और उसे सुधारने की विधियों का अध्ययन किया जाता है।
इस शास्त्र का प्राचीन यूनान और प्राचीन रोम में बहुत महत्व रहा था और इसका पश्चिमी परम्परा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। प्राचीन यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने व्याख्यान में श्रोताओं को प्रभावित करने के तीन तत्व बताएँ थे, जिन्हें यूनानी भाषा में 'लोगोस' (λόγος, logos, तर्क), 'पेथोस' (πάθος, pathos, भावनाएँ) और 'ईथोस' (ἦθος, ethos, मूल्य व विश्वास) कहा जाता है। प्राचीन यूनान से लेकर १९वीं शताब्दी के अंत तक पश्चिमी लेखकों और अन्य विद्वानों को विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थानों में व्याख्यान शास्त्र की औपचारिक शिक्षा दी जाती थी।
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