दरभंगा (𑂠𑂩𑂦𑂁𑂏𑂰) भारत के बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र में दरभंगा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।
दरभंगा 𑂠𑂩𑂦𑂁𑂏𑂰 | |
---|---|
{{{type}}} | |
ललित नारायण मिथिला विश्विद्यालय | |
निर्देशांक: 26°10′N 85°54′E / 26.17°N 85.90°E 85°54′E / 26.17°N 85.90°E | |
ज़िला | दरभंगा ज़िला |
प्रान्त | बिहार |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 380,125 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | मैथिली,हिंदी,उर्दु |
पिनकोड | 846003–846005 |
दूरभाष कोड | 06272 |
वाहन पंजीकरण | BR-07 |
लिंगानुपात | 910:1000 ♂/♀ |
वेबसाइट | darbhanga |
दरभंगा बागमती नदी के किनारे बसा हुआ है। यह ज़िले एवं प्रमंडल का मुख्यालय है। दरभंगा प्रमंडल के अंतर्गत तीन जिले दरभंगा, मधुबनी एवं समस्तीपुर आते हैं। दरभंगा के उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर, पूर्व में सहरसा एवं पश्चिम में मुजफ्फरपुर तथा सीतामढ़ी जिला है। दरभंगा शहर के बहुविध एवं आधुनिक स्वरुप का विकास सोलहवीं सदी में मुग़ल व्यापारियों तथा ओईनवार शासकों द्वारा विकसित किया गया। दरभंगा 16वीं सदी में स्थापित दरभंगा राज की राजधानी था। अपनी प्राचीन संस्कृति और बौद्धिक परंपरा के लिये यह शहर विख्यात रहा है। इसके अलावा यह जिला आम और मखाना के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
दरभंगा शब्द संस्कृत भाषा के शब्द 'द्वार-बंग' या फारसी भाषा के 'दर-ए-बंग' यानी बंगाल का दरवाजा का मैथिली भाषा में कई सालों तक चलनेवाले स्थानीयकरण का परिणाम है। ऐसा कहा जाता है कि मुगल काल में दरभंगी खां ने शहर बसाया था। दरभंगी खां स्वेत ब्राह्मण थे उन्होने कालांतर मे इस्लाम कबुल किया था। जिन्हें महराज दरभंगा के द्वारा "खां" की उपाधि मिली थी। आज भी खां वंसज दरभंगा में निवास करते हैं'। दरभंगा की स्थापना 1 जनवरी 1875 को हुई थी।
वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर कूच किया और विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा मिथि के नाम पर यह प्रदेश मिथिला कहलाने लगा। रामायणकाल में मिथिला के एक राजा जो जनक कहलाते थे, सिरध्वज जनक की पुत्री सीता थी। विदेह राज्य का अंत होने पर यह प्रदेश वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुर का उत्तरी हिस्सा आता था, सुगौना के ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं को कला, संस्कृति और साहित्य का बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन,चन्द्र मोहन पोद्दार आदि महान विद्वानों के लेखन से इस क्षेत्र ने प्रसिद्धि पाई। ओईनवार राजा शिवसिंह के पिता देवसिंह ने लहेरियासराय के पास देवकुली की स्थापना की थी। शिवसिंह के बाद यहाँ पद्मसिंह, हरिसिंह, नरसिंहदेव, धीरसिंह, भैरवसिंह, रामभद्र, लक्ष्मीनाथ, कामसनारायण राजा हुए। शिवसिंह तथा भैरवसिंह द्वारा जारी किए गए सोने एवं चाँदी के सिक्के यहाँ के इतिहास ज्ञान का अच्छा स्रोत है।
दरभंगा शहर १६ वीं सदी में दरभंगा राज की राजधानी थी। १८४५ इस्वी में ब्रिटिश सरकार ने दरभंगा सदर को अनुमंडल बनाया और १८६४ ईस्वी में दरभंगा शहर नगर निकाय बन गया। १८७५ में स्वतंत्र जिला बनने तक यह तिरहुत के साथ था। १९०८ में तिरहुत के प्रमंडल बनने पर इसे पटना प्रमंडल से हटाकर तिरहुत में शामिल कर लिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात १९७२ में दरभंगा को प्रमंडल का दर्जा देकर मधुबनी तथा समस्तीपुर को इसके अंतर्गत रखा गया।
दरभंगा जिला का कुल क्षेत्रफल 2,279 वर्ग कि०मी० है। समूचा जिला एक समतल उपजाऊ क्षेत्र है जहाँ कोई चिह्नित वनप्रदेश नहीं है। जिले में हिमालय से उतरने वाली नित्यवाही और बरसाती नदियों का जाल बिछा है। कमला, बागमती, कोशी, करेह और अधवारा समूह की नदियों से उत्पन्न बाढ़ हर वर्ष लाखों लोगों के लिए तबाही लाती है औसत सालाना ११४२ मिमी वर्षा का अधिकांश मॉनसून से प्राप्त होता है। दरभंगा जिले को आमतौर पर निम्न चार क्षेत्रों में बाँटा जाता है:
2001 की जनगणना के अनुसार इस जिला की कुल जनसंख्या 32,85,493 है जिसमें शहरी क्षेत्र तथा देहाती क्षेत्र की जनसंख्या क्रमश: 2,66,834 एवं 30,18,639 है।
जबकि जनगणना 2011 के आकड़ों के अनुसार इस जिले की कुल आबादी 3,937,385 है।जिसमें पुरुषों की संख्या 2,059,949 और महिलाओं की 1,877,436 है।
दरभंगा जिले के अंतर्गत 3 अनुमंडल, 18 प्रखंड, 329 पंचायत, 1,269 गांव एवं 23 थाने हैं।
दरभंगा जिले की चूना युक्त दोमट किस्म की मिट्टी रबी एवं खरीफ फसलों के लिए उपयुक्त है। भदई एवं अगहनी धान, गेहूँ, मकई, रागी, तिलहन (चना, मसूर, खेसारी, मूंग), आलू गन्ना आदि मुख्य फसले हैं। जिले के कुल क्षेत्रफल का 198415 हेक्टेयर कृषियोग्य है। 19617 हेक्टेयर क्षेत्र ऊँची भूमि, 37660 हेक्टेयर मध्यम और 38017 हेक्टेयर नीची भूमि है। यद्यपि दरभंगा जिला वनरहित प्रदेश है फिर भी निजी क्षेत्रों में वानिकी का अच्छा प्रसार देखने को मिलता है। गाँवों के आसपास रैयती जमीन पर सीसम, खैर, खजूर, आम, लीची, अमरुद, कटहल, पीपल, ईमली आदि मात्रा में दिखाई देते है। आम और मखाना के उत्पादन के लिए दरभंगा प्रसिद्ध है और खास स्थान रखता है। जिले के प्रायः हर हिस्से में तलाबों एवं चौर क्षेत्र में पोषक तत्वों से भरपूर मखाना यहाँ का खास उत्पाद है। मखाना की खेती से हो रहे लाभ के मद्देनजर यहाँ के किसानों में मखाने की खेती के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है।
परंपरा से यह शहर मिथिला के ब्राह्मणों के लिए संस्कृत में उच्च शिक्षा के लिए प्रसिद्ध रहा है। पुरातन एवं आधुनिक शिक्षा का अच्छा केंद्र होने के बावजूद दरभंगा एक निम्न साक्षरता वाला जिला है। ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अलावे यहाँ तथा कामेश्वरसिंह संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित है जिसके अंतर्गत राज्य के सभी संस्कृत महाविद्यालय आते हैं। शहर में तकनीकि एवं चिकित्सा महाविद्यालयों के अतिरिक्त मिथिला शोध संस्थान जैसे विशिष्ट शिक्षा केंद्र भी हैं। दरभंगा जिला के अंतर्गत आनेवाले शिक्षण संस्थान इस प्रकार हैं:
दरभंगा कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग, महिला अभियंत्रण महाविद्यालय, राजकीय पॉलिटेक्निक दरभंगा, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान
दरभंगा चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल, नर्सिंग ट्रेनिंग स्कूल-1, दंत चिकित्सा महाविद्यालय-4 (निजी), एमआरएम आयुर्वेदिक महाविद्यालय
इसके अतिरिक्त जिले में १ केन्द्रीय विद्यालय, १ जवाहर नवोदय विद्यालय तथा ४ चरवाहा विद्यालय भी है।
दरभंगा प्रदेश मिथिला संस्कृति का अंग एवं केंद्र विंदु रहा है। रामायण काल से ही यह राजा जनक तथा उत्तरवर्ती हिंदू राजाओं का शासन प्रदेश रहा है। मध्यकाल में इस क्षेत्र पर मुसलमान शासकों का कब्जा होने पर भी यह हिंदू क्षत्रपों के अधीन रहा और अपनी खास पहचान बनाए रखने में सक्षम रहा। पहले से मुस्लिम बहुल दरभंगा शहर में 19वीं सदी के आरंभ में ब्राह्मण राजा द्वारा अपनी राजधानी स्थानान्तरित किए जाने के बाद हिंदू यहाँ बसने लगे और शहर में मिली-जुली संस्कृति पनपी। यद्यपि दरभंगा हिंदू बहुल है लेकिन मुसलमान कुल संख्या का २५% है। मिथिला पेंटिंग, ध्रुपद गायन की गया शैली और संस्कृत के विद्वानों ने इस क्षेत्र को दुनिया भर में खास पहचान दी है। प्रसिद्ध लोक कलाओं में सुजनी (कपड़े की कई तहों पर रंगीन धागों से डिजाईन बनाना), सिक्की (खर एवं घास से बनाई गई कलात्मक डिजाईन वाली उपयोगी वस्तु) तथा लकड़ी पर नक्काशी का काम शामिल है। सामा चकेवा एवं झिझिया दरभंगा का लोक नृत्य है। यहाँ के लोगों के खान-पान एवं विद्या प्रेम पर मैथिली में प्रचलित एक कहावत दरभंगा की संस्कृति को अच्छी तरह बयान करता है:
पग-पग पोखर, पान मखान
सरस बोल, मुस्की मुस्कान
विद्या-वैभव शांति प्रतीक
ललित नगर दरभंगा थिक
अपने गौरवशाली अतीत एवं अद्वितीय सांस्कृतिक परंपराओं के बावजूद दुर्भाग्य से मिथिला संस्कृति का केन्द्र रहा यह क्षेत्र आज राजनैतिक उपेक्षा का शिकार होकर रह गया है और अब कभी कभी अपनी बाढ़ की भयावहता के कारण अखबारों की सुर्खियों में दिख जाता है।
दरभंगा के महाराजाओं को कला, साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षकों में गिना जाता है। स्वर्गीय महेश ठाकुर द्वारा स्थापित दरभंगा राज किला-परिसर अब एक आधुनिक स्थल एवं शिक्षा केंद्र बन चुका है। भव्य एवं योजनाबद्ध तरीके से अभिकल्पित महलों, मंदिरों एवं पुराने प्रतीकों को अब भी देखा जा सकता है। अलग-अलग महाराजाओं द्वारा बनबाए गए महलों में नरगौना महल, आनंदबाग महल एवं बेला महल प्रमुख हैं। राज पुस्तकालय भवन ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय द्वारा एवं अन्य कई भवन संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा उपयोग में लाए जा रहे हैं।
रंती-ड्योढी (मधुबनी) के स्वर्गीय चंद्रधारी सिंह द्वारा दान किए गए कलात्मक एवं अमूल्य दुर्लभ सामग्रियों को शहर के मानसरोवर झील किनारे 7 दिसम्बर 1957 को स्थापित एक संग्रहालय में रखा गया है। इस संग्रहालय को सन 1974 में दोमंजिले भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया जहाँ संग्रहित वस्तुओं को ११ कक्षों में रखा गया है। सितंबर 1977 में दरभंगा के तत्कालिन जिलाधिकारी द्वारा महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह संग्रहालय की स्थापना की गयी। दरभंगा महाराज के वंशज श्री शुभेश्वर सिंह द्वारा दान की गयी दुर्लभ कलाकृतियाँ एवं राज से संबधित वस्तुएँ यहाँ संग्रहित है। दरभंगा राज की अमूल्य एवं दुर्लभ वस्तुएं तथा सोने, चाँदी एवं हाथी दाँत के बने हथियारों आदि को आठ कक्षों में सजाकर रखा गया है। सोमवार छोडकर सप्ताह में प्रत्येक दिन खुलने वाले दोनों संग्रहालयों में प्रवेश नि:शुल्क है।
दरभंगा स्टेशन से १ किलोमीटर की दूरी पर मिथिला विश्वविद्यालय के परिसर में दरभंगा राज द्वारा १९३३ में बनवाया गया काली मंदिर बहुत सुंदर है। स्थानीय लोगों में इस मंदिर की बड़ी प्रतिष्ठा है और लोगों में ऐसा विश्वास है कि यहाँ पूजा करने से मनोवांछित फल मिलता है।
दरभंगा जिला के बेनीपुर प्रखंड के अंतर्गत बैगनी नवादा गांव में स्थित मां दुर्गा की अति प्राचीन मंदिर है। यहां प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु अन्य राज और विदेशों से आते हैं। [6]
दरभंगा रेलवे स्टेशन से १ किलोमीटर उत्तर स्थित १८९१ में बना कैथोलिक चर्च इसाई पादरियों के प्रशिक्षण के लिए बना था। १८९७ में भूकंप से हुए नुकसान के बाद चर्च में २५ दिसम्बर १९९१ से पुन: प्रार्थना शुरु हुई। चर्च के बाहर ईसा मसीह का एक प्रतिमा बना है।
दरगाह शरीफ हज़रत मखदूम भीखा शाह सैलानी रहमतुल्लाह अलैह
बिहार के दरभंगा शहर के रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर की दूरी पर दिग्घी तालाब के पश्चिम किनारे पर मोहल्ला मिश्रटोला (भठियारी सराय ) में मेन स्टेशन रोड पर हज़रत मखदूम भीखा शाह सैलानी रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार है। सड़क से ऊंचाई पर स्थित आलिशान दरगाह शरीफ में हज़रत मखदूम भीखा शाह सैलानी रहमतुल्लाह अलैह का तकरीबन 400 वर्ष से पुराना मज़ार है।। दरगाह परिसर में ही हज़रत मौलाना सैयद शाह फ़िदा अब्दुल करीम समरक़ंदी रहमतुल्लाह अलैह का भी मज़ार है… जो बाद में आये थे। हज़रत मखदूम भीखा शाह सैलानी रहमतुल्लाह अलैह का सालाना उर्स ईद उल ज़ुहा (बकरीद ) की 13 से 17 तारिख तक होता है। जिसमें बिहार के अलावा अन्य राज्यों से और पड़ोसी देश नेपाल के भी ज़ायरीन आते हैं। ... .हज़रत मखदूम भीखा शाह सैलानी रहमतुल्लाह अलैह को मानने वाले हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी मज़हब के लोग है। .
दरभंगा रेलवे स्टेशन से २ किलोमीटर की दूरी पर दरभंगा टावर के पास बनी मस्जिद शहर के मुसलमानों के लिए सबसे बड़ा इबादत स्थल है। पास ही सूफी संत मकदूम बाबा की मजार है जो हिंदुओं और मुसलमानों के द्वारा समान रूप से आदरित है। स्टेशन से १ किलोमीटर दूर गंगासागर तालाब के किनारे बनी भिखा सलामी मजार के पास रमजान महीने की १२-१६ वीं के बीच मेला लगता है।
समस्तीपुर-खगडिया रेललाईन पर हसनपुर रोड से २२ किलोमीटर दूर कुशेश्वर स्थान में रामायण काल का शिव मंदिर है। यह स्थान अति पवित्र माना जाता है। कुशेश्वर स्थान, घनश्यामपुर एवं बेरौल प्रखंड में 7019 एकड जलप्लावित क्षेत्र को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया है। विशेष पारिस्थिकी वाले इस भूक्षेत्र में स्थानीय, साईबेरियाई तथा नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से आनेवाले पक्षियों की अच्छी तादाद दिखाई देती है। ललसर, दिघौच, माइल, नकटा, गैरी, गगन, अधानी, हरियल, चाहा, करन, रतवा, गैबर जैसे पक्षी यहाँ देखे जा सकते हैं। पक्षियों के अवैध शिकार के कारण इनकी तादाद अब काफी कम हो चुकी है। साथ ही अब तो कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर है। लोगो में अभी भी पूरी जागरूकता नहीं आ पायी है और लोग इन्हें भोजन के पौष्टिक और स्वादिष्ट स्रोत जो ठण्ड के मौसम में उन्हें उपलब्ध होते है के रूप में देखते है। लोगो के इसी रवैये के परिणाम स्वरुप परियावारण पर परिवर्तन आ रहे है। अब इनकी संख्या काफी कम हो चुकी है।
जाले प्रखंड में कमतौल रेलवे स्टेशन से ३ किलोमीटर दक्षिण अहिल्यास्थान स्थित है। अयोध्या जाने के क्रम में भगवान श्रीराम ने पत्थर बनी शापग्रस्त अहिल्या का उद्धार इस स्थान पर किया था। यहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी (चैत्र) एवं विवाह पंचमी (अगहन) को मेला लगता है। कमतौल से ८ किलोमीटर दूर ब्रह्मपुर में गौतम ऋषि का स्थान माना जाता है। यहाँ गौतम सरोवर एवं पास ही मंदिर बना है। ये पौराणिक स्थल केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत विकसित हो रहे रामायण सर्किट का हिस्सा है। रामायण सर्किट के विकसित होने से स्थानीय कारीगरों को रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकेगा और स्थानीय कला एवं शिल्प को बढ़ावा मिलेगा। ब्रह्मपुर के खादी ग्रामोद्योग केंद्र एवं खादी भंडार से वस्त्र खरीदे जा सकते है।
यह मुस्लिम बहुल गांव है, यह एकमात्र यही मंदिर है इस गाँव में जिसे बनाने के लिए हिंदुओं को काफी परेशानी झेलनी पड़ी।
दरभंगा बिहार के सभी मुख्य शहरों से राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। जिले में सड़कों की कुल लंबाई २२४५ किलोमीटर है। यहाँ से वर्तमान में दो राष्ट्रीय राजमार्ग तथा तीन राजकीय राजमार्ग गुजरती हैं। मुजफ्फरपुर से झंझारपुर जानेवाला राष्ट्रीय राजमार्ग ५७ दरभंगा होते हुए जाती है। ५५ किलोमीटर लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग १०५ दरभंगा को जयनगर से जोड़ता है। जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग ५७ एवं १०५ की कुल लंबाई ५७ किलोमीटर तथा राजकीय राजमार्ग संख्या ५० तथा ५६ की कुल लंबाई ८९ किलोमीटर है।
दरभंगा भारतीय रेल के नक्शे का एक महत्वपूर्ण जंक्शन है जो पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र के समस्तीपुर मंडल में पड़ता है। दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर स्थित समस्तीपुर जंक्शन से बड़ी गेज की एक लाईन दरभंगा होते हुए नेपाल सीमा पर झंझारपुर को जाती है। दरभंगा से एक अन्य रेल लाईन सीतामढी होते हुए नरकटियागंज को जोड़ती है। सकड़ी से हसनपुर को जोडनेवाली रेललाईन निर्माणाधीन है। १९९६ तक दरभंगा मीटर गेज से जुड़ा था लेकिन अमान परिवर्तन के बाद यहाँ से दिल्ली, मुम्बई, पुणे, कोलकाता, अमृतसर, गुवाहाटी तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध है।
दरभंगा से १० किलोमीटर की दूरी पर बना हवाई अडडा जो पूर्व में भारतीय वायु सेना के उपयोग में था। २ दिसंबर २०२० से यहां से वाणिज्यिक उड़ान प्रारंभ किया गया। इस हवाई अड्डा की आधारशिला राज्य के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार,तत्कालीन केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री श्री सुरेश प्रभु एवं उड्डयन राज्य मंत्री श्री जयंत सिन्हा के उपस्थिति में २४ दिसंबर २०१८ को रखी गई थी। वर्तमान में यहां से दिल्ली, अहमदाबाद, बंगलुरु,मुंबई आदि नगरों के लिए अंतरराज्यीय उड़ाने भारतीय विमान पतन प्राधिकरण द्वारा संचालित किये जा रहें हैं।अन्य नागरिक हवाई अड्डा १३० किलोमीटर दूर पटना में स्थित है। लोकनायक जयप्रकाश हवाई क्षेत्र पटना (IATA कोड- PAT) से अंतर्देशीय तथा सीमित अन्तर्राष्ट्रीय उड़ाने उपलब्ध है। इंडियन, किंगफिशर, जेट एयर, स्पाइस जेट तथा इंडिगो की उडानें दिल्ली, कोलकाता और राँची के लिए उपलब्ध हैं।
mp board 12th blueprint 2023 Archived 2022-12-09 at the वेबैक मशीन
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article दरभंगा, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.