द्वीप जावा: इंडोनेशिया का द्वीप

जावा द्वीप इंडोनेशिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला द्वीप है। प्राचीन काल में इसका नाम यव द्वीप था और इसका वर्णन भारत के ग्रन्थों में बहुत आता है। यहां लगभग २००० वर्ष तक हिन्दू सभ्यता का प्रभुत्व रहा। अब भी यहां हिन्दुओं की बस्तियां कई स्थानों पर पाई जाती हैं। विशेषकर पूर्व जावा में मजापहित साम्राज्य के वंशज टेंगर लोग रहते हैं जो अब भी हिन्दू हैं।

द्वीप जावा: परिचय, इतिहास, जलवायु
मेरबाबु पर्वत ज्वालामुखी
द्वीप जावा: परिचय, इतिहास, जलवायु
सुमेरू पर्वत और ब्रोमो पर्वत पूर्व जावा में

यहां की और पूरे इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता (संस्कृत: जयकर्त) है। बोरोबुदुर और प्रमबनन मन्दिर यहां स्थित हैं।

परिचय

जावा इंडोनेशिया गणराज्य में द्वीप है, जो मलाया द्वीपशृंखला में बृहत्तम तथा सर्वप्रसिद्ध है। इसका क्षेत्रफल १,३२,१७४ वर्ग मील है। इसके उत्तर में जावा समुद्र, दक्षिण में हिंद महासागर और पूर्वं में बाली तथा पश्चिम में सुमात्रा द्वीप हैं, जो क्रमश: बाली तथा सुंडा जलडमरूमध्यों द्वारा जावा से अलग हो गए हैं। जावा की पूर्व से पश्चिम लंबाई ९६० किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण अधिकतम चौडाई २०० किलोमीटर है।

जावा का निर्माण अधिकांशत: तृतीयक युगीन चट्टानों द्वारा तथा अंशत: नवीननतर चट्टानों द्वारा हुआ है। केवल तीन स्थानों पर प्राचीनतर चट्टानें उपलब्ध होती हैं जो संभवत: क्रिटेशस युग की हैं। जावा के भूगर्भ एवं धरातल पर प्लाइओसीन (Pliocene) तथर मध्य तृतीयक युगीन ज्वालामुखी उद्गारों का अधिक प्रभाव पड़ा हैं। प्लाइओसीन काल में जावा एशिया के महाद्वीपीय क्षेत्र से जुड़ा हुआ था, जिसके कारण यहाँ महाद्वीपीय जीव जंतुओं का प्रादुर्भाव हुआ। सुंडालैंड के जलमग्न होने के कारण यह द्वीप में परिवर्तित हो गया। तदनंतर स्थानीय धरातलीय सोव, समुद्रतल में परिवर्तन, प्रवालीय निर्माण, ज्वालामुखी उद्गारों तथा संरक्षण कार्यो के फलस्वरूप जावा को वर्तमान उच्चावचव (relief) प्राप्त हुआ है।

जावा के लगभग मध्य में पूर्व-पश्चिम फैली श्रेणियाँ इसे उत्तरी तथा दक्षिणी दो भागों में बाँटती हैं। ये श्रेणियाँ पश्चिम में विशेष दक्षिणाभिमुख हो गई हैं, जिससे दक्षिणवर्ती समुद्रमुखी ढाल अधिक खड़ी और बीहड़ हो गई है। खड़ी ढाल तथा हिंद महासागरीय शक्तिशाली तरंगों एवं धाराओं के थपेड़ों के कारण दक्षिण में कोई सुरक्षित बंदरगाह नहीं बन पाया है, न ही कोई बड़ा मैदानी भाग ही मिलता है। उत्तर में ढाल कम है, अत: मैदानी भाग अधिक विस्तृत है, जिसमें काँप का जमाव है। पूर्वं में पहाड़ी श्रेणियों के मध्य में छोटी छोटी घाटियाँ स्थित हैं। उत्तरी समुद्रतट पर जहाजरानी के लिये अनेक स्थानों पर प्राकृतिक सुविधाएँ प्राप्त हैं। जावा में १०० से भी अधिक ज्वालामुखी पर्वत हैं, जिनमें से १३ जाग्रत हैं। यहाँ २० से भी अधिक पर्वत-शिखरों की ऊँचाई ८,००० फुट से अधिक है, जिनमें सेमेरू (१२,०६०') सर्वोच्च है। द्वीप में भूकंप आते हैं लेकिन बहुत ही विरल। हिंद महासागर में गिरने वाली नदियाँ छोटी और तीव्रगामी हैं। परंतु उत्तर में प्रवाहित होनेवाली नदियाँ अपेक्षाकृत अधिक लंबी, धीमी गतिवाली परिवाहनीय हैं। सोलो (५३६ किलोमीटर), ब्रांटास या केर्डारी (३१८ किलोमीटर) और जीलिवंग (८० किलोमीटर) प्रमुख नदियाँ हैं। ('बौरोबुदुर" मन्दीर (' 'महात्मा"'बुद्ध"का)

इतिहास

प्राचीन काल में जावा निकटवर्ती क्षेत्रों की तरह ही हिंदू राजाओं के अधीन था। हिंदू राजाओं ने ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार किया। यहाँ बहुत से हिंदू एवं बौद्ध मंदिर तथा उनके अवशेष विद्यमान हैं। मैगेलांग के निकट 'बोरोबुदुर' मंदिर संसार का बृहत्तम बौद्ध मंदिर है। १४वीं-१५वीं सदी में यहाँ मुस्लिम संस्कृति फैली और यहाँ मुसलमानों का राजनीतिक आधिपत्य हुआ। तदनंतर पुर्तगाली, डच एवं अंग्रेज व्यापारी आए किंतु १६१९ ई. से डचों ने राज्य ने राज्य प्रारंभ किया। २७ दिसंबरट १९४९ में इंडोनेशिया गणराज्य की स्थापना हुई, जिसमें जावा प्रमुख द्वीप है।

जलवायु

जावा का जलवायु भूमध्यरेखीय है, किंतु चतुर्दिक् स्थिति समुद्रों तथा मौसिमी हवाओं का व्यापक प्रभाव पड़ता है। यहाँ दो ऋतुएँ होती हैं, अप्रैल से अक्टूबर तक शुष्क ऋतु तथा नवंबर से मार्च तक वर्षा ऋतु रहती है, जिसमें प्रात:काल को छोड़कर निरंतर वर्षा होती रहती है। वार्षिक वर्षा ८०-८५ होती है। दिन में मैदानों तथा घाटियों का औसत ताप २९० से ३४ सें. तथा रात्रि में २३० से २७० सें. रहता है।

जावा में समुद्री तथा पालतू जानवरों को मिलाकर १०० से भी अधिक प्रकार के जानवर प्राप्य हैं। गैंडा, बाघ, तेंदुआ, बिल्ली, बैल, सुअर तथा कुत्ते, लंगूर, हिरण आदि वन्य तथा भैंस, बैल, घोडे, बकरी और भेड़ें आदि पालतू जानवर प्रमुख हैं। यहाँ लगभग ३०० प्रकार के पक्षी, विविध जीव तथा मछलियाँ मिलती हैं।

ताप के साथ वनस्पति का घनिष्ट संबंध है। समुद्रतटीय प्रदेश में दलदली झाड़ियाँ, भीतरी भागों में नारियल, ताड़, तथा लंबी घासें और पर्वतीय ढालों पर ऊँचाई के अनुसार पर्वतीय वनस्पति मिलती है। सागौन, महोगनी, चीड़, ओक, चेस्टनट आदि वृक्षों से लकड़ी मिलती है।

निवासी

जावा संसार के घने आबाद क्षेत्रों में से एक है और यहाँ का जनबाहुल्य राष्ट्रीय समस्या हो गया है। इंडोनेशिया के कुल क्षेत्रफल का ७% क्षेत्र होते हुए भी कुल जनसंख्या के लगभग ६५% लोग यहाँ बसते हैं। समस्त जनसंख्या में जावा जातिवाले ७५% (मध्य एवं उत्तरी क्षेत्र); सुंडानी १५% (पश्चिमी क्षेत्र); और मदुराई रक्तवाले १० % (पूर्वी क्षेत्र) हैं। यद्यपि अधिकांश निवासी मुस्लिम हैं, तथापि उनके पुराने हिंदू और बौद्ध संस्कार और संस्कृति उनके रीतिरिवाज, नामकरण भाषा एवं साहित्य पर छाए हुए हैं।

उत्पादन

जावा कृषिप्रधान क्षेत्र है। रबर, गन्ना, चाय, कहवा तथा कोको व्यापारिक फसलें हैं, जो पहले बड़े बागानों में किंतु अब छोटे खेतों में भी उगाई जाती हैं। संसार का कुल ९०% सिनकोना पैदा होता है। नारियल की जटा, तेल, ताड़ का तेल (Palm oil) और पटुआ भी निर्यात होते हैं। धान सर्वप्रमुख उपज और निवासियों का आहार है। सिंचाई की सहायता से इसकी दो फसलें उगाई जाती है। तंबाकू, मकई, मटर, सोयाबीन (Soyabean) और कसावा (Cassaya) अन्य फसलें हैं। खनिजों में कोयला और तेल का उत्पादन होता है। जावा के लोग लगभग ३० प्रकार की दस्तकारी के लिये प्रसिद्ध हैं। बड़े उद्योग अधिक नहीं हैं। जकार्ता, सुराबाया और सेमरांग में जहाज बनते और मरम्मत होते हैं। कपड़े, कागज, दियासलाई, कांच और रासायनिक पदार्थो के भी कुछ कारखाने हैं।

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