छऊ नृत्य

छऊ नृत्य, जिसे छौ नाच भी कहा जाता है, मार्शल और लोक परंपराओं वाला एक अर्ध शास्त्रीय भारतीय नृत्य है। यह तीन शैलियों में पाया जाता है जिनका नाम उस स्थान के नाम पर रखा गया है जहां उनका प्रदर्शन किया जाता है, यानी पश्चिम बंगाल का पुरुलिया छऊ, झारखण्ड का सरायकेला छऊ और ओडिशा का मयूरभंज छऊ।

छऊ नृत्य
छाऊ कलाकार
छऊ नृत्य
पुरुलिया छऊ

2010 में, छाऊ नृत्य को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था।

छऊ नृत्य के विशेषताएं

छऊ नृत्य मुख्य तरीके से क्षेत्रिय त्योहारों में प्रदर्शित किया जाता है। ज्यादातर वसंत त्योहार के चैत्र पर्व पर होता हैं जो तेरह दिन तक चलता है और इसमेें पूरा सम्प्रदाय भाग लेता हैं। इस नृत्य में सम्प्रिक प्रथा तथा नृत्य का मिश्रण हैं और इसमें लड़ाई की तकनीक एवं पशु कि गति और चाल को प्रदर्शित करता हैं। गांव ग्रह्णि के काम-काज पर भी नृत्य प्रस्तुत किय जाता है। इस नृत्य को पुरुष नर्तकी करते हैं जो परम्परागत कलाकार हैं या स्थानीय समुदाय के लोग हैं। ये नृत्य ज्यादातर रात को एक अनाव्रित्य क्षेत्र में किया जाता है जिसे अखंड या असार भी कहा जाता है। परम्परागत एवं लोक संगीत के धुन में यह नृत्य प्रस्तुत किया जाता हैं। इसमें मोहुरि एवं शहनाई का भी इस्तेमाल होता है। इसके अतिरिक्त तरह-तरह के ढोल, धुम्सा और खर्का आदि लोक वाद्यों का भी प्रयोग होता है। नृत्य के विषय में कभी-कभी रामायण और महाभारत की घटना का भी चित्रण होता है। छऊ नृत्य मूल रूप से मुंडा, भूमिज, महतो, कलिन्दि, पत्तानिक, समल, दरोगा, मोहन्ती, भोल, आचार्या, कर, दुबे और साहू सम्प्रदाय के लोगों द्वारा किया जाता हैं। छऊ नाच के संगीत मुखी, कलिन्दि, धदा के द्वारा दिया जाता है। छऊ नृत्य में एक विशेष तरह का मुखौटा का इस्तेमाल होता हैं जो बंगाल के पुरुलिया और सरायकेला के आदिवासी महापात्र, महारानी और सूत्रधर के द्वारा बनाया जाता है। नृत्य संगीत और मुखौटा बनाने की कला और शिल्प मौखिक रूप से प्रेषित किया जाता है।

जातीय संबद्धता

छऊ नृत्य मूल रूप से भूमिज, मुण्डा, कुम्हार, कुड़मी महतो, डोम, खंडायत, तेली, पत्तानिक, समल, दरोगा, मोहन्ती, भोल, आचार्या, कर, दुबे और साहू सम्प्रदाय के लोगो के द्वारा किया जाता है। छऊ नाच के संगीत मुखि, कलिन्दि, धदा के द्वारा दिया जाता हैं। छऊ नृत्य में एक विशेष तरह का मुखौटा का इस्तेमाल होता है, जो पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और सरायकेला के सम्प्रदायिक महापात्र, महारानी और सूत्रधर के द्वारा बनाया जाता है। नृत्य संगीत और मुखौटा बनाने की कला और शिल्प मौखिक रूप से प्रेषित किय जाता है। यह मुख्यत: क्षेत्रीय त्योहारों में प्रदर्शित किया जाता है। वसंत त्योहार के चैत्र पर्व पर तेरह दिन तक छऊ नृत्य का समारोह चलता है। हर वर्ग के लोग इस नृत्य में भाग लेते हैं।

शैलियाँ

छऊ नृत्य 
भुवनेश्वर में मयूरभंज छऊ कलाकार कृष्ण और गोपी का अभिनय कर रहे हैं।

छऊ नृत्य की तीन शैलियां हैं। सरायकेला छऊ सरायकेला में विकसित हुआ, जब यह कलिंग के गजपति शासन के अधीन था, जो वर्तमान में झारखण्ड के सरायकेला खरसावाँ जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है, पुरुलिया छऊ पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में बाघमुंडी के राजा द्वारा विकसित किया गया और मयूरभंज छाऊ ओडिशा के मयूरभंज जिले में प्रदर्शित किया जाता है। तीनों उप-शैलियों में सबसे प्रमुख अंतर मुखौटे के उपयोग है। छऊ की सरायकेला और पुरुलिया शैलियों में नृत्य के दौरान मुखौटों का उपयोग होता है, जबकि मयूरभंज छऊ किसी भी मुखौटे का उपयोग नहीं होता।

झारखण्ड की सेरायकेला छऊ की तकनीक और प्रदर्शनों की सूची इस क्षेत्र के पूर्ववर्ती कुलीनों द्वारा विकसित की गई थी, जो इसके कलाकार और गुरु दोनों थे, और आधुनिक युग में सभी पृष्ठभूमि के लोग इसे नृत्य करते हैं। सरायकेला छऊ को प्रतीकात्मक मुखौटों के साथ प्रदर्शित किया जाता है, और अभिनय उस भूमिका को स्थापित करता है जिसे अभिनेता निभा रहा है। पुरुलिया छऊ में निभाए जा रहे चरित्र के आकार के व्यापक मुखौटों का उपयोग किया जाता है; उदाहरण के लिए, एक शेर के पात्र के चेहरे पर शेर का मुखौटा होता है और शारीरिक वेशभूषा भी होती है और अभिनेता चारों पैरों पर चलता है। ये मुखौटे कुम्हारों द्वारा तैयार किए जाते हैं और इन्हें मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले से प्राप्त किया जाता है। मयूरभंज में छऊ का प्रदर्शन बिना मुखौटे के किया जाता है और तकनीकी रूप से यह सरायकेला छऊ के समान है।

उल्लेखनीय लोग

लोकप्रिय माध्यमों में

  • छऊ नृत्य को 2012 कि हिन्दी फिल्म बर्फी मे शामिल किया गया है, जिसमें पुरुलिया छऊ प्रदर्शित किया गया है। अनेकों बंगाली फिल्मों मे भी इस नृत्य को दिखाया गया है।

चित्र दीर्धा

बाहरी कड़ियां

  1. Chhau dance of Purulia, by Asutosh Bhattacharya. Pub. Rabindra Bharati University, 1972.
  1. Barba, Eugenio; Nicola Savarese (1991). A dictionary of theatre anthropology: the secret art of the performer. Routledge. ISBN 0-415-05308-0.
  1. Claus, Peter J.; Sarah Diamond, Margaret Ann Mills (2003). South Asian folklore: an encyclopedia. Taylor & Francis. ISBN 0-415-93919-4.
  1. पुरुलिया छऊ (पुस्तिका)

सन्दर्भ

Tags:

छऊ नृत्य के विशेषताएंछऊ नृत्य जातीय संबद्धताछऊ नृत्य शैलियाँछऊ नृत्य उल्लेखनीय लोगछऊ नृत्य लोकप्रिय माध्यमों मेंछऊ नृत्य चित्र दीर्धाछऊ नृत्य बाहरी कड़ियांछऊ नृत्य सन्दर्भछऊ नृत्यओडिशाझारखण्डपश्चिम बंगालभारत के नृत्य

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

मुख्य चुनाव आयुक्त (भारत)प्राचीन भारतभारत के लोक नृत्यई-वाणिज्यमदारझारखण्ड के मुख्यमन्त्रियों की सूचीभारतीय राजनीतिक दर्शनपतञ्जलि योगसूत्रनेपोलियन बोनापार्टसात चिरंजीवियोंइन्दिरा गांधीरक्षा खडसेकोशिकादार्जिलिंगजसोदाबेन मोदीमिताली राजभारत के राजनीतिक दलों की सूचीजीमेलशिक्षा का अधिकारचाणक्यसुलोचना (पौराणिक)शिक्षकगुट निरपेक्ष आंदोलनमकर राशिप्रयागराजरविन्द्र जडेजारामायणभारत के गृह मंत्रीमिलिंद सोमनगेहूँकामायनीवाक्य और वाक्य के भेदहिन्दू धर्मग्रन्थकिशनगंज लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रसंकट मोचन हनुमान मंदिरभारत का विभाजनओशोनेहरू–गांधी परिवारविनायक दामोदर सावरकरसीताविश्व बैंकशिक्षाभारतीय संविधान के संशोधनों की सूचीजर्मनी का एकीकरणनोटा (भारत)गुप्त राजवंशआयुष शर्माआंबेडकर जयंतीभारत का ध्वजअष्टांग योगउद्यमिताअसहयोग आन्दोलनसांख्यिकीपर्यावरणगुदा मैथुनध्रुव राठीशेखर सुमनहिन्दीक़ुतुब मीनारकोई मिल गयासंगीतभारतीय क्रिकेट टीमसलमान ख़ानसमाजचम्पारण सत्याग्रहभारत की राजभाषा के रूप में हिन्दीश्रीमद्भगवद्गीताहनुमानराष्ट्रीय शिक्षा नीतिआयतुल कुर्सीमुम्बईएलोरा गुफाएंक़ुरआनविवाह संस्काररावणसंसाधनमानुषी छिल्लरकामाख्या मन्दिरव्यक्तित्व🡆 More