ज्वार (Sorghum vulgare ; संस्कृत : यवनाल, यवाकार या जूर्ण) एक प्रमुख फसल है। ज्वार कम वर्षा वाले क्षेत्र में अनाज तथा चारा दोनों के लिए बोई जाती हैं। ज्वार जानवरों का महत्वपूर्ण एवं पौष्टिक चारा हैं। भारत में यह फसल लगभग सवा चार करोड़ एकड़ भूमि में बोई जाती है। यह खरीफ की मुख्य फसलों में है। यह एक प्रकार की घास है जिसकी बाली के दाने मोटे अनाजों में गिने जाते हैं।
सिंचाई करके वर्षा से पहले एवं वर्षा आरंभ होते ही इसकी बोवाई की जाती है। यदि बरसात से पहले सिंचाई करके यह बो दी जाए, तो फसल और जल्दी तैयार हो जाती है, परंतु बरसात जब अच्छी तरह हो जाए तभी इसका चारा पशुओं को खिलाना चाहिए। गरमी में इसकी फसल में कुछ विष पैदा हो जाता है, इसलिए बरसात से पहले खिलाने से पशुओं पर विष का बड़ा बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यह विष बरसात में नहीं रह जाता है। चारे के लिये अधिक बीज लगभग 12 से 15 सेर प्रति एकड़ बोया जाता है। इसे घना बोने से हरा चारा पतला एवं नरम रहता है और उसे काटकर गाय तथा बैलों को खिलाया जाता है। जो फसल दाने के लिये बोई जाती है, उसमें केवल आठ सेर बीज प्रति एकड़ डाला जाता है। दाना अक्टूबर के अंत तक पक जाता है भुट्टे लगने के बाद एक महीने तक इसकी चिड़ियों से बड़ी रखवाली करनी पड़ती है। जब दाने पक जाते हैं तब भुट्टे अलग काटकर दाने निकाल लिए जाते हैं। इसकी औसत पैदावार छह से आठ मन प्रति एकड़ हो जाती है। अच्छी फसल में 15 से 20 मन प्रति एकड़ दाने की पैदावार होती है। दाना निकाल लेने के बाद लगभग 100 मन प्रति एकड़ सूखा पौष्टिक चारा भी पैदा होता है, जो बारीक काटकर जानवरों को खिलाया जाता है। सूखे चारों में गेहूँ के भूसे के बाद ज्वार का डंठल तथा पत्ते ही सबसे उत्तम चारा माना जाता है।
यह अनाज संसार के बहुत से भागों में होता है। भारत, चीन, अरब, अफ्रीका, अमेरिका आदि में इसकी खेती होती है। ज्वार सूखे स्थानों में अधिक होती है, सीड़ लिए हुए स्थानों में उतनी नहीं हो सकती। भारत में राजस्थान, पंजाब आदि में इसका ब्यवहार बहुत अधिक होता है। बंगाल, मद्रास, बरमा आदि में ज्वार बहुत कम बोई जाती है। यदि बोई भी जाती है तो दाने अच्छे नहीं पडते। इसका पौधा नरकट की तरह एक डंठल के रूप में सीधा ५-६ हाथ ऊँचा जाता है। डंठल में सात सात आठ आठ अंगुल पर गाँठें होती हैं जिनसे हाथ डेढ़ हाथ लंबे तलवार के आकार के पत्ते दोनों ओर निकलते हैं। इसके सिरे पर फूल के जीरे और सफेद दानों के गुच्छे लगते हैं। ये दाने छोटे छोटे होते हैं और गेहूँ की तरह खाने के काम में आते हैं।
ज्वार कई प्रकार की होती है जिनके पौधों में कोई विशेष भेद नहीं दिखाई पड़ता। ज्वार की फसल दो प्रकार की होती है, एक रबी, दूसरी खरीफ। मक्का भी इसी का एक भेद है। इसी से कहीं कहीं मक्का भी ज्वार ही कहलता है। ज्वार को जोन्हरी, जुंडी आदि भी कहते हैं। इसके डंठल और पौधे को चारे के काम में लाते हैं और 'चरी' कहते हैं। इस अन्न के उत्पत्तिस्थान के संबंध में मतभेद है। कोई कोई इसे अरब आदि पश्चिमी देशों से आया हुआ मानते हैं और 'ज्वार' शब्द को अरबी 'दूरा' से बना हुआ मानते हैं, पर यह मत ठीक नहीं जान पड़ता। ज्वार की खेती भारत में बहुत प्राचीन काल से होती आई है। पर यह चारे के लिये बोई जाती थी, अन्न के लिये नहीं।
क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश हैं।
इसश हैं।
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article ज्वार, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.