कजरी: भोजपुरी लोकगीत, सावन में गावल जाला

कजरी एक तरह क भोजपुरी लोकगीत हवे। ई सावन की महीना के गीत ह जेकरा के बिटिया-मेहरारू कुल झुलुआ खेलत समय गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के कजरी खेलल कहल जाला। ई उत्तर प्रदेश आ बिहार के एगो प्रमुख लोक गीत ह। भोजपुरी के अलावा ई गीत मैथिली आ मगही में भी गावल जाला हालाँकि, कजरी के मुख्य क्षेत्र भोजपुरी इलाका ह आ एहू में बनारस आ मिर्जापुर के एकर मुख्य क्षेत्र मानल जाला।

कुछ बिद्वान लोग कजरी के उत्पत्ति बनारस मिर्जापुर के इलाका में होखे वाली शक्ति पूजा भा गौरी पूजा से जोड़े ला जबकि कुछ वैष्णव लोग एकरा के कृष्ण के पूजा आ लावनी से जोड़े ला; मिर्जापुर के परंपरागत लोक कलाकार लोग एकरा के बिंध्यवासिनी देवी के देन माने ला।

परिचय

भोजपुरी क्षेत्र में अलग-अलग मौसम में गावल जाये वाला तरह-तरह क गीत पावल जालें जेवना में कजरी क आपन एगो अलगे महत्व हवे । कजरी गावे क मौसम बरसात क होला जब सावन की महीना में ए गीतिन के गावल जाला। कजरी के गीति गावे वाली अधिकतर नयी उमर के लइकी-बिटिया होखेलीं । ए गीतिन के सावन में झुलुआ खेलत घरी लइकी कुल आपस में दू गोल बना के गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के "कजरी खेलल" कहल जाला । एहीसे कजरी की गीतिन में सावन की महीना क हरियाली, रिमझिम बरखा के फुहार क खनक, खेल-खेलवाड़ के चंचलता, किशोरावस्था के उछाह अउरी आपस में छेड़छाड़ वाली बातचीत के सरसता झलकेला।

बिसय

कइसे खेले जाइबि सावन में कजरिया
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
तू त चललू अकेली, केहू सँगे ना सहेली;
गुंडा घेरि लीहें तोहरी डगरिया ।।
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
केतने जना खइहें गोली, केतने जइहें फँसिया डोरी;
केतने जना पीसिहें जेहल में चकरिया ।।
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।

--परंपरागत

सावन की मौसम आ गावे वालिन के उमिर के हिसाब से कजरी की गीतिन में बिबिध बिसय मिले ला। गीतन में अधिकतर चंचलता आ प्रेम भरल विषय मिलेला। पति-पत्नी के प्रेम संबाद आ बिरह बरणन, ननद-भउजाई क छेड़छाड़, सासु-पतोहि क नोकझोंक, राधा-कृष्ण क प्रेम, श्रीरामचंद्र के जीवन क घटना, अउरी नई बहुरिया क अपने पति की साथै प्रेम भरल बातचीत कजरी क सबसे चलनसार विषय हवें। कजरी गावे वालिन में बहुत लइकी अइसनो होखेलीं जवन बियाह-गौना की बाद पहिला सावन में अपनी नइहर आइल रहेलिन जेकरा वजह से वियोग-रस से भरल कजरी क गीति भी मिलेलीं। एकरी अलावा जीवन के हर बात से जुडल कजरी क गीति छिटपुट पावल जालीं । भारत की आजादी के लड़ाई के समय देशभक्ती वाली कजरी बहुत गावल जाँय जिनहन के "सुराजी कजरी" कहले जाला।

इहाँ कजरी क एगो उदहारण दिहल जात (साइड में कोटेशन देखीं) बा जवना में ननद-भउजाई क संवाद बा:

पहिले भउजाई ननद से कहत बाड़ी कि "ए ननद! इ तऽ बादर घेरि आइल बा, हम एइसना में सावन में कजरी खेले कइसे जाइबि?" ननद कहत बाड़ी – "ए भउजी तू त अकेलही कजरी खेले जात बाडू आ तोहरी संघे केहू सहेलियो नइखे। डहरी में तोहके गुंडा रोकि लिहें तब!" ए पर भउजाई जवाब देत बाड़ी – "कि अगर एइसन होई त केतने लोग गोली खाई, केतने फाँसी पर चढ़ी आ केतने लोगन के जेल में चक्की पीसे के पड़ी।"

एकरे अलावा खेती-किसानी से ले के बिबिध अन्य बिसय के बरनन कजरी के गीतन में मिले ला। दयानिधि मिसिर के कहनाम बा:

(कजरी में)... बारिश के इतने रंग-रूप, चित्र-प्रयोजन, मूड-भाव सँजोये हैं भोजपुरी साहित्य ने कि इस वैविध्य के सामने कोई भी साहित्य रश्क करे।

— दयानिधि मिश्र, लोक और शास्त्र: अन्वय और समन्वय,

तिहुआर

गीत के बिधा के अलावा कजरी नाँव के तिहुआर भी मनावल जाला। ई तिहुआर भोजपुरी इलाका आ बुंदेलखंड में मामूली हेरफेर के साथ मनावल जाला। सावन के पुर्नवासी के सावनी के साथ-साथ कजरी पूर्णिमा भी कहल जाला। भोजपुरी क्षेत्र में ई तिहुआर जेठ के पहिला अतवार, जेकरा परावन पूजा कहल जाला, से सुरू हो के भादों के अँजोरिया के दुआदसी, बावनी दुआदसी तक ले चले ला। एह दौरान बनारस आ मिर्जापुर में दुगोल्ला कजरी के आयोजन भी होला। "कजरी नउमी" आ "कजरी पूर्णिमा" के एह तिहुआर के बुंदेलखंड के लोक-जीवन में खास महत्व हवे; सावन के अँजोरिया के नउमी के कजरी बोअल जाला, जेह में मेहरारू बाहर से माटी ले आ के घर के अन्हार कोना में रख के ओम्मे जौ बोवे लीं, पुर्नवासी के एही जई के ले के कजरी के जलूस निकरे ला।

कलाकार

मिर्जापुर के कबी आ लोक कलाकार बदरीनारायण 'प्रेमधन' के नाँव कजरी के जिकिर में जरूर लिहल जाला।शांति जैना 1992, p. 97 गायक कलाकारन में भोजपुरी-मैथिली इलाका के मशहूर गायिका शारदा सिन्हा के गावल कई गो कजरी परसिद्ध बाड़ी।

फुटनोट

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