महाकवि घाघ अवधी भाषा केर साहित्यन इन कै बड़ी ऊंची जगहा है उनके अंदर खेती केर और मनई मनई के जीवन से सम्बंधित तमाम चीजन केर बड़ी अद्भुत जानकारी रही| मनई के रहन सहन उनके खेती पाती और तबियत के बारे मा घाघ जी जौन कहिन ऊ सब वैज्ञानिक रूप मा सही पावा गवा|
घाघ जी के जनम स्थान और उनके समय के बारे में विद्वानन मा बड़ा मतभेद है. कुछ जने उनका गोंडा कय बतावत है, कुछ जने बिहार कय| मुला बहुत विद्वानै घाघ केर जनम सं. 1753 वि. मानत है| घाघ कय असली नाम के बारे मा कुछ खास नाही पता लागी पावा है| श्री रामनरेश त्रिपाठी जी अपनी खोजन के आधार पै घाघ का ब्राह्मण (देवकली दुबे) मानत है। उनके अनुसार घाघ कन्नौज के चौधरी सराय के रहै वाले रहे| कहा जात है कि घाघ हुमायूँ के दरबार मा गये रहे। हुमायूँ के बाद उनका सम्बन्ध अकबर से भी रहा। अकबर कला संगीत अउर गुण केर बड़ा पारखी रहा| विद्वानन की सम्मान करत रहा। घाघ केर गुन से अकबर भी प्रभावित भवा और उपहार मा घाघ का तमाम धन और कन्नौज के लगे जमीन दिहिस, जिपर घाघ गाँव बसाइन| ओकर नाम ‘अकबराबाद सराय घाघ’ रखा गवा। सरकारी कागजन मा अबहिऊ ऊ गाँव केर नाम ‘सराय घाघ’ है। ई कन्नौज स्टेशन से लगभग एक मील पच्छूं मा है। अकबर घाघ का ‘चौधरी’ केर उपाधि दिहिन रहै। यही लिए घाघ के घर परिवार वाले अबहिऊ उनका चौधरी कहत हैं। ‘सराय घाघ’ का दूसर नाम ‘चौधरी सराय’ है। घाघ के मेहरारू कय नाम तौ नहीं मालूम है मुला उनके दुई लरिका रहे -मार्कण्डेय दुबे और धीरधर दुबे। ई दूनौ लरिकन के खानदान मा दुबे लोगन के बीस पच्चीस घर अबहिउ वही बस्ती मा हैं। मार्कण्डेय के खानदान में बच्चूलाल दुबे, विष्णु स्वरूप दुबे तथा धीरधर दुबे के खानदान में रामचरण दुबे और कृष्ण दुबे वर्तमान मा हैं। ई लोग घाघ की सातवीं-आठवीं पीढ़ी में अपने का बतावत हैं। ई लोग कबहू दान नाही लेत है| यनकर कहब है कि घाघ अपने घरम करम के बड़े कट्टर रहे| जिहिके कारन उनका अंत मा मुग़ल दरबार से हाटाय दीन गवा रहै और उनके जमींदारी केर अधिकतर भाग जब्त कै लीन गवा रहे।
सावन मास बहे पुरवइया। बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
अर्थात् यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि। भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान। आधा खखड़ी आधा धान।।
अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है।
आद्रा में जौ बोवै साठी। दु:खै मारि निकारै लाठी।।
अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
ऐसा कहा जात है कि घाघ कै और उनके बहुरिया कै पटरी नाही खात रही| कुछ विद्वान कय कहब है कि यही मारे घाघ आपन मूल निवास छपरा छोड़कै कन्नौज चले गये रहै। घाघ जौन कहावत कहत रहे उनकर बहुरिया ओकर उल्टा कहावत बनाय के कहत रही| पं. राम नरेश त्रिपाठी, घाघ और उनके बहुरिया केर नोंकझोंक वाली कुछ कहावते लिखिन है| तनि देखा जाये…………………
घाघ-
मुये चाम से चाम कटावै, भुइँ सँकरी माँ सोवै। घाघ कहैं ये तीनों भकुवा उढ़रि जाइँ पै रोवै।।
बहुरिया-
दाम देइ के चाम कटावै, नींद लागि जब सोवै। काम के मारे उढ़रि गई जब समुझि आइ तब रोवै।।
घाघ -
तरून तिया होइ अँगने सोवै रन में चढ़ि के छत्री रोवै। साँझे सतुवा करै बियारी घाघ मरै उनकर महतारी।।
बहुरिया -
पतिव्रता होइ अँगने सोवै बिना अन्न के छत्री रोवै। भूख लागि जब करै बियारी मरै घाघ ही कै महतारी।।
घाघ –
बिन गौने ससुरारी जाय बिना माघ घिउ खींचरि खाय। बिन वर्षा के पहनै पउवा घाघ कहैं ये तीनों कउवा।।
बहुरिया –
काम परे ससुरारी जाय मन चाहे घिउ खींचरि खाय। करै जोग तो पहिरै पउवा कहै पतोहू घाघै कउवा।।
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