तीजनबाई (जन्म - २४ अप्रैल १९५६) भारत कय छत्तीसगढ़ राज्य कय पंडवानी लोक गीत-नाट्य कय पहिली महिला कलाकार अहै। देश-विदेश में आपन कला का प्रदर्शन करे वाली तीजनबाई का बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। उ सन १९८८ में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री अउर २००३ में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत रहिन। उनका १९९५ मा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार अउर २००७ मा नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित करल गइल बा।
तीजनबाई | |
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तीजनबाई पंडवानी का प्रदर्शन के बाद | |
जनम | २४ अप्रैल १९५६ |
वासस्थान | गनियारी ग्राम, भिलाई, दुर्ग जिला, छत्तीसगढ़ |
रोजगार | पंडवानी लोक गीतकार |
जिवनसाथी | तुक्का राम |
पुरस्कार | पद्म भूषण २००३ पद्म श्री १९८८ संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार १९९५ ,पद्म विभूषण २०१९ |
भिलाई के गनियारी गाँव में जनमल इ कलाकार के पिता का नाम हुनकलाल परधा अउर माता का नाम सुखवती रहे। नन्हें तीजन आपन नाना ब्रजलाल का महाभारत की कहानियां गावत देखत रहिन अउर धीरे धीरे इनका इ कहानियां याद आवे लागिन। ओकर अद्भुत लगन अउर प्रतिभा का देखके उम्मेद सिंह देशमुख उनका अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिहिन। १३ साल की उमर मा ऊ अपने पहले मंच पर अइली. उ समय महिला पंडवानी गायिका केवल बैठकर ही गा सकती थी, जेके वेदमती शैली कहल जात बा। पुरुष खड़ा होइके कापलिक शैली मा गावा करत रहेन । तीजनबाई पहिली महिला रहीं जे कापलिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन कइलीं। एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर इनका सुने अउर तब से तीजनबाई का जीवन बदल गयल.कई अति विशिष्ट लोगन के सामने देश-विदेश में ऊ आपन कला का प्रदर्शन कईलन
प्रदेश अउर देश कय सरकारी अउर गैर सरकारी संस्था कय द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पे सम्मोहित कर देवे वाला अद्भुत नृत्य नाट्य कय प्रदर्शन करत है। जइसहिं प्रदर्शन शुरू होत है, उनकर रंग बिरंगी फुलदान वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप लेत है. कभी दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम का गदा तो कभी द्रौपदी का बाल बनकर, यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय पर पहुंचाता है जहाँ वे तीजन के साथ - साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल - कपट की ऐतिहासिक संवेदना का अनुभव करते हैं। उनकर ठोस लोकनाट्य वाली आवाज अउर अभिनय, नृत्य अउर संवाद उनकर कला के खास अंग हयेन।
पंडवानी छत्तीसगढ़ का ऊ एकल नाट्य है जेकर अर्थ है पांडववाणी - यानि पांडवकथा, यानि महाभारत का कथा. इ कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान अउर देवार छत्तीसगढ़ की जातियन की गायन परंपरा है। परधान गोंड की एक उपजाति है अउर देवार धुमन्तू जाति है। इ दुन्नो जातिन कय बोली, वाद्ययंत्रन मा अंतर है । परधान जाति का कथा वाचक या वाचिका के हाथ मा "किंकनी " होत है अउर देवरन के हाथ मा ररुंझु होत है। परधानन अउर देवारन पंडवानी लोक महाकाव्य का छत्तीसगढ़ भर फैलाइन। तीजन बाई पांडवानी का आज के संदर्भ में ख्याति दिहिस, न केवल हमरे देश मा बल्कि विदेशों मा भी।
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